पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४७२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बैंगोपन्य-जैस ४२० मेध, नरमेध, म मेध, मौवामणि. सादगार पादि यिविध तरह में निन्दित हो कर निन्दुर पाधि पाइयां और मवगाजियाँ लोकममूने, फिर मिवायगणयान, रुद्र प्रगमन को कर प्रामाकारों में मसूट को गलत " म्यान, वसुम्यान, सहस्पतिम्यान, गोनोक, यवनवीनीक, गोवण्यायो (मं. सो.) गोत्रय-लोहितादिवार सदनम्र अन्य नोन लोकीको पनिकम कर पमियताकि नित्य पित्वात् डोय। गोपय मुमिका सो परत्य। मोक आते देखा। यहांमे वे कहाँ भने गये मका जे गोपान (अयगोपाल )-हिन्दो एक कवि । ये कागो कहा नहीं मना। यह देख कर उन्होंने यह पुरोझै रपमेवाने पर राघालाग पुय घे। रन गुरु मियोंग समका कारण पूछा। उन नोगौने कहा का नाम था मा रामगुलाम । १८१०१०में ने "गीपथ्य सारखत अद्यालोकको गये , तुम किमो | तुलमोगप्दार्थप्रकाश नामक एक हिन्दीका कोप रमा सरह भी वहां जा नहीं सकते।" पाविरयमको था। मम तोम प्रशाग-पहने यस मन्यापन, मोट पाये। पाथमर्म पा कर देखा तो वे पूर्ववत् । दूमीमें गदार्य निर्णय और गोमा में गुस्यनका पर्व म्यागको भौति देठे सायद देख कर देयन रन विकृत दुपा है। यमुमख्याका यान एकादिका शिण यन गये, रम्हनि टेवनको मौतधर्म ग्रहण में इन किया गया है। इस प्रत्यकी भाषा माधारण एकादि नियय देष गामानुमार योगविधि पोर कर्तव्याचका वनगणनाका एक उदाहरण दिया जाता है- उपदेश देकर तरकारमोचित क्रियाकलाप ममात किये ।। "सास्ती गणातिमदन भूमि भह मन्द। महर्षि गीपथ्यको रूपाम देयसने भी की मिहि) काटि पुनि कशी समिक्षाना" प्रातको यो। उम ममय रतिपादि मुरगण देयन कार (हिं. श्री. ) अजयभार देखो। पाथममें उपनियत दुप, मुनियर गानवने देयनको विम्म | यसो ( मो.) प्रातःकानमें गाई भानयानो याविट कर कहा-'महर्षि गोषवाम कुछ भी सो मेरय रागको एक रागिणो । वन नहों।"इम पा देवनाम गालयको कहा-"३ | मेजी-पन्नाव रोगियारपुर जिलेशी गदगदर मोल. मुनिया: एमो घात न कहिये। महामा गोपाक का प्राचीन नगर । यर पक्षा० २१ २१३० पौरमा. ममाग प्रभाव, निश, तपस्या या योगयन पोर किसोमें भी १३ पू.में गदगारगेमोन उतर पयित । नाममामा गोषयाने पादित्यसोय का योगानु- मोयामग्या कोई २०५ोगो। मानोन ममयमा हाम का रसमा प्रभाव फेनाया है, उनको मामान न मयान गजापोका प्रधान स्याम था। पहने पहन मममें । उनके ममान योगवन्नमम्पय तपग्यो विरत राजा ममि वहां जा कर रहे। हाकि , है।" एक दिन महर्षि पमित देयमने भगवान जेगी। १०.९ में घाटीका किना पना था। १८५में र- पपातो कहा-"मह: पार नतो मुतिसाद रा| जित् मिलने उमे पधिकार किया। टिग गव में गएने मस्तुट होने ६ पोर म निम्दावा धारा कह। मनिए! किमा तोड़ा था। समशन रानापों मामाचा में पूरता रशि-पापको प्रसाद पोकरीम नमे 'मावर्गम पभी विद्यमान जो म्यानीय पापार प्राम किया और BRका फम भगवान में गो का केन्द्र है। पवान प्रमम्मिय पोर पविय याम रमका उजेट EिY.प्रिय टोन. गोदो। दिया-"महमानपान पातिगत पो हारामिदास (ft.y) पगतको जतिका एकता ममें भोजर भी उनको निन्दा त मोहोत. पोसोपोने को मम्मो नमो पनिया ममोहिमको पाप धोघम वाहिका भी गिनाम भी करना । नाकारो बोराममोश पोर पत्त दया काम- पानी पनागर पोर पोन विषयका गोकनकर मैं पारी । प्रति माया पान करते । पप अप (प.पु. नमा पेड़। २ नको माहो। निने पर मन की निगा हिंसा रिन्दो एक प्रति दिन ३१५४४ विप