पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४३९

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३८२ मुहार-जूडिशाः । जुहार (म.पु.) जेनों में प्रचलित एक प्रकारका पमिः। “जति जुहोतीनां फोबिशेषः" । माया पौ . वन्दन । भद्रयाहुहितामें लिखा है-"पादाः परस्पर जिन यनों में (मयम') स्वाक्षाकारका प्राधान्य है उस कुर्यु हारिति संश्रपम्" तात्पर्य यह है कि जैमधर्मम | को जुहोति कहते हैं, इसमें स्वाहाकार द्वारा केवल . यता रखनेवाले महधर्मि गण परस्पर 'जुझार' कह कर होम किया जाता है। विमय करें।म पर एक गाथा प्रचलित है ___ उपविष्टहोमा स्याहाकारप्रदाना होतयः।" . "अज्जा जिणवर होई हाहा इति भाकम्माणि । . . (कात्या० श्री. २७) . रुखो भासवद्वारा जुहारो भिणयरो भगिया ॥" जुतास्य (सं० पु.) जुहास्यमिधास्य । नुइरूप मुग्नु । पाजकल बहुत से लोग जुहार न कह कर बय | युक्त होमोय वहि, जुद पाकारको मुखयुत्य होमको जिनेन्द्र वा जियजिनेन्द्र कहने लगे हैं। किन्तु प्राचीन | अग्नि। मुहार ही है। जू ( स० स्त्री. ) जगतो यथायथं कर्त भयादी किया । जुदी (दि. स्त्रो०) एक प्रकारका घना और छोटा भाड़। विवचि प्रच्छित्रीति । उण् २१५७ ।। पाकाग 1२ सरः इसके पत्ते छोटे और ऊपर नोचे नुकीले होते हैं । इमके | स्वती । ३ पिशाचो। ४ जवन, वेग। ५ गमन, जाना। फल बहुत सुगन्धित पीर सफेद होते हैं। लोग इसे फुन्न । (वि.) नवयुक्ता, जिसमें गति हो। (सी०) वायु- वाहीम लगाते हैं। वर्षा ऋतुमें इसमें फल लगते हैं। माहल । ८ वल या घोड़ेके मस्तक परका टोका। जो देखो। ज् (हिं अव्य.) १ वज, बुदेलखण्ड, राजपूताना पादिम जुहु (स'• ली.) १ जूहू देखो। २ प्राची दिशा, पूर्वदिशा। अमीरों के नाम के साथ लगाये जानेका एक पादर- जराण (सं० पु०) हुच्छ -सन् पानच्.सनोलक छलोपथ ।। सूर का शब्द । २ सम्बोधनका शब्द। ३ एक निरर्थक भर्सेर्गुणः शुदव । वण २८८ १ चन्द्र । (त्रि.) १) शब्द। यह बैलों या भैसों को खड़ा करने के लिये कहा कौटिल्पकारी, कपट का व्यवहार करनेवाला। (वृह० ३०) जाता है। शुधुवान (सं० पु.) इयते हु-कमागि कानन् । १ अग्नि- न (हिं. स्त्रो०) वालोंमें पड़नेयाला एक छोटा स्वेदन भाग। २ वृक्ष, पेड़ । ३ कठिन दय। (संक्षिप्तधार | कोड़ा। यह काले रंगफी भोर टूसरे प्रा गायों के शरीर उगादिवृत्ति) हवान' यह पाठ प्रामादिक मालूम पड़ता के प्राथयमे रहती है। इसके पागकी तरफ छह पैर है। 'जुवान'को जगह 'जुष्टुवान' हो संगत है। होते है और पिछला हिस्सा कई गण्डौम विभक्त शेता शम (सं० वी०) जुहोत्यनया हु-विप। हुव: इलाम । रण् २१६० । १ निपातनात् हित्वञ्च । पलाश-काष्ठ निर्मित है। इसके मुं में एक प्रकारको भुको हुई सड़ी होती . है। जिसे अन्य प्राप्पियों के शरीरमें चुमा कर उनका भईछन्द्रावति यन्नपात्र, पलाशको लकड़ीका बना हुआ रहा चूसती है। प्रण्डे पब देती है। भण्इ बालों पर्दचन्द्राकार यज्ञपात्र । (कात्यायन श्रौ० १११११४) २ पूर्व चुपके रहते हैं और दो तीन दिनमै उसमें से कोई दिया। शुहराण (सं• पु.) जुई रणति इत्यण । कर्मण्यण् । पा | निकल पड़ते हैं। कपड़ों में पानेवाला चीलर नामका ११।१ अग्नि । २ अध्वर्य, चार यन्न करानेवालों कीड़ा मो इसी जातिका है। फर्क इतना हो कि यद्द . मसे एक, यजमें यजये दका मन्त्र पढ़नेवाला प्राधण। सफेद होता है । भित्र भित्र जोयों के शरीरमे भिव मिव चन्द्रमा । घामतिकी में पढ़ती है और उनका रंग भी विनिय । शुवत् (म० ए०) शुद्धः पात्र होमकियोग्यतयास्त्य प्रकारका होता है। यूका देगे। . . पिन शहः माप निपातनात् मस्य यः। पग्नि । (शब्द॰) । जूठ (दि. वि., पु.) भूठा देया। चीता (जि.पु.) या पाहुति देनेवाला। जूठन (हिं. स्त्रो०) डन देखे।। , उधोति (सी .) जुधात्वयं- निशे स्तिप । शेम. जाति (हिं. पु.) वनोंक झण्ट के पागे पागे धमन- भेद, एक प्रकारका होम। " | वाला पैसा