पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४२

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पाता। और भी एक तरहका जमदल होता , जिसका पोतराजका अर्थ है-महिपका राजा । पोतराजोका वैज्ञानिक नाम सजिनिया मलकोसिस् ( Eugenia | कहना है कि, किसो समय उनके एक पूर्वपुरुपने ब्राह्मण Alfalnceensis ) है, ग्रेजोमें मालय ऐन ( Malay | के वेशमें लक्ष्मीक अवतार दयमवके साथ विवाह किया Happle) और बङ्गालमें 'मलाक जामहल' कहते हैं। था। कुछ दिनों तक ये दोनों सुखसे रहे थे। - यह पहले पहल मलयहीपपुञ्जमे लाया गया था। एक दिन दयमवने मासको देखने को इच्छा प्रगट म समय बाल और ब्रह्मदेशर्म ( बगौचौम) उत्पन को होलया अपनी माताको ले आया । दयमवने मिष्ठान होता है। इसका फूल लाल घोर फल रसदार अमरूद बना कर सासको खिलाया । सासने खुश हो कर पुत्र में जैसा होता है । यह पेड़ भी दो तरहका है। कहा- "बेटा! भोजन तो बहुत अच्छा बना है, यह हत् जामुन-मका वैज्ञानिक नाम है, Euge. खाने ठोक महिपके दांत ममान लगता है।" इससे nia operculata. इसे हिन्दोमें रायाम, पयमान भौर। दयमय समझ गई कि, वे जघन्य होलयाके चकरमें पड़ जमवा काइते है । यह हिमालय पर्वतको तरहटोमें तथा गई है। अन्त में उन्होंने गुस्से में पा कर स्वामीको मार चम्पाम, प्रहा, परिमघाट और सिंहलको वनभूमिः पैदा डाला ! इसो उपलक्षमे अब भी दयमवके उत्सवम महिप- होता है। इसका पेड़ पड़ा होता है। ग्रोम भातुके , की गलि हुपा करतो है । दयमव देखे । होलयासे उत्पन . अन्नमें सका फस्त पकता है। यह खाने में सुखाटु पौर) दयमवके पुत्रगण तभीमे पोतराज कहाते हैं। वातरोगमें उपकारी है। इमको नड़, पत्तियां तथा । ये ग्राम वा नगरके किनारे रहते हैं, दूसरोसे कोई बस्कल यादि भी पौषधार्थ व्यवान होते हैं। भी संसर्ग नहीं रखते। अन्य जातियां भी इनसे घृणा ____३ जम्बूफल, भामुन । ( अमर• ) ४ खनामप्रसिद्ध | करती हैं। मरे हुए जानवरों को उठामा, चन्दन बनाना ___ नदो, जावूनदी। (मास्यपु. १५.१६०) ५ जाहीप। । और बोम रोना यहो इन लोगोंका नित्यकर्म या उप- अम्पूदीप देखो। जीविका है। ये मरो हुई गाय और भैसाको ला कर उस. जाम-काश्मीरी प्राणों की एक यो । काश्मीरम जम्बूका मांस खाते हैं। इसलिए साधारण लोग इन्हें नामका एक भगर है, यहाँसे इमका निकास हुआ है। 'होलया मर्थात् गन्दे का कर पुकारते हैं, ये लोग बाबू- कर्णाटक देशको एक मोच भाति । यह साधारणतः । मासके सिवा शराब पीना भी खूब पसन्द करते हैं। होलया और महार नामसे भी प्रसिद्ध है। इस जातिके . ये कठिन परिश्रमी और पातिथेय होते हैं। इनकी सोग पधिकतर धारवारमें ही रहते हैं। पोशाक निमय बोके मराठियों जैसी है। सभी लोग मलोगोंका कहना है कि इनके पादि पुरुषका | कानमें कुशल भोर हातमें अंगुरो परनते हैं। ये कमाहो नाम नम्व था। उनके समय में यह पृथिवी पामो पर तैरती [ भाषा यातचीत करता । 'घीरसलिए लोग सुखी या निचिन्त नहीं रह पाते था। ये विसी माणकी भक्ति यहा वा बाध्य देव अपने अपने पुत्रको मीवितावस्थामें हो जमीनमें गाद | देवियोंको पूजा नहीं करते। परन्तु होली, नागपञ्चमो, कर पृथियोकी बुनियाद मजबूत की थी। तभोसे इस | दशहरा और दीवाली पर्वको मानते हैं। इन लोगों में प्रथिवीका जम्बू नाम पड़ा है। बलयसाप्प नामक स्वजातीय गुरु हैं, जो वेसारोमें रहते ये कहते हैं कि, "पहले इमारे पूर्वपुरष ही इस पृथिवी पर आधिपत्य करते थे, बादमें ब्राह्मण पत्रिय • सन्तान उत्पन्न होते ही ये उसका नार काट कर पादि आ गये और उन्होंने उनको भगा कर अपना | पाधिपत्य जमा लिया।" घरके सामने गाड़ देते हैं। उसके ऊपर एक पत्थर विका इनमें होलया और पोतराज ये दो वेणियां है ।। देते हैं, जिस पर बैठ कर वो के साथ प्रसूति घान दयमय, उहचप और येक्षय, ये तीन इनकी उपास्य करती है। . देविया । " पांच दिन सोवरम एक शिलाके अपर पांच पाती- Vol. VIII. 10