पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३९८

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मौवपुष्पा-जौवत्ति कर्मधा० । जन्तुरूप पुष्प, एक प्रकारका फल ।। रोधमे इन्होंने रागमाना नामक एक सङ्गीत विषयक जीवपुष्पा ( स० स्त्री० ) जीवयति जीय निच अच्. ओय । पुस्तककी रचना की है। • लोवक पुष्पं यस्याः । वृहज्जीवन्ती, बड़ी जीवती। जोवराज-१ नघुचिवालदारक प्रणता १२ सेतुमदरसा जोवप्रिया (म स्त्रो. ) जीवानां प्राणिनां प्रिया हित- तरङ्गिणोके टोकाकार। ३ एक कवि । इनके पिता का कारित्वात् जीव मोगाति प्रो-क-टाप । १ हरीतको, नाम जमराज और पितामहका नाम कामरूपमूरि था। हड़ । २ जीववसभा, प्राणप्यारी। इन्होंने गोपानरम्प टीका तथा तर्ककारिका पोर उसकी जीववन्धु ( स० पु० ! बन्धुजीब, गुलदुपहरिया, बन्ध क। तमन्नरी नामकी एक टीका प्रणयन की है। ४ परमा. जोवभद्रा ( स्त्री०) जोवान प्राणिनां भद्र' मगन मप्रकाश-वचनिया नामक जैन अन्य कर्मा । ये बड़ा यस्याः, बहुव्री०।१ नौवन्ती लता । (को०) २ जोवका | नगर ‘मालया) के रहनेवाले, खण्डेलवाल जातिके भोर कुपन्त, प्राणका कल्याण । ३ नोवपाक, मसना । ४ | १७६२ सम्वत्में विद्यमान थे। औषधविगेय. एक प्रकारको दवा। जोवराम-१ सामग्रीमादके प्रणिता । २ स्वस्तिवाचन जीनमन्दिर ( स ली. . जीयम्य आत्मनो मन्दिर ग्रह । पति के प्रणेता । मिव । गरोर, देह। जीवला (स० स्त्रो०) जीवं उदरस्य लमि माप्ति काति जीवमाटका ( स० स्त्री०) जीवस्य माटका, ६ तत्। नागयति ला-क । आतोऽनुपम कः । पा२॥ १ महलो। कुमारी, धमदा, नन्दा, विमला, मनाला, यला और । २ मिहपिप्पलो। पदमा ये हो सात जीयमाटका है। 'कुमारी धनदा नन्दा जोवनीक (म पु०) जीयानां लोकः भोगमाधन, तत्। विममा मंगला पला। पद्मा चेति च विष्टयाताः सप्तताः जीव । १ प्रान और चेतनविशिष्ट पदार्योका वामस्थान, मयं. मातृकाः ॥" (विधान गरिजात ) ये सात देवियां माताको लोक. भूलोक । समान मोवोंका पालन और कल्याण करती है, इसलिये "विधामवृक्षमा सय जीवनोकः ।" ( उद्मट ) ये जीवमाटका कहलाती है। "ममैवाशो जीमलोके जीवभूतः सनातनः ।" ( गीता) भीषयाज (मपु० ) जोव: पराभिः याज: याजन यज । २ जोवरूप ममुष्य। लिए भावे पच । पश दारा याजन, पशपाम किया जाने "तदा पोरे। भवति औवलोके ।" (मारत बन ३४ न.) वाला यन्न। जीयवती ( संम्बो०) १ चोरकाकोलो, एक प्रकारली जीवयोनि (म. स्त्री० ) जीवा जीवनवती योनिः, जड़ी। कर्मधा० । मजीव जन्तु, जानवर । ओयमासा (सं० वि०) जिससे बच्चे भीत हो। जोवरत (म'• लो०) जोयोत्पादक रहा. गाकन 1 स्त्रियोंके जोपर्ग (म.पु.) जीवानां वर्ग: ममूहः, सत् । पाय-योगित वा रजको जो गर्भधारणके उपयुक्त जीवममूह। हुपा हो, उसको जोवर कदमकते हैं। गर्भ के अग्नी जोषयहिनी (मत्रो ) ऋदि। पोमत्वके हेतु अर्थात् शीत उन दोनों गुणोकि रहनके . जोवयसो (म. मो.) जोययतोति मोवा मापटावी कारण स्त्रियोंका रज भाग्नेय है। जोवरक्त पाञ्चभौतिक | मा चासो वसो घेति, कर्मपा। १शोरकाकोलो, एक ६ पर्थात् जिम पञ्चभूतसे भरीर उत्पन होता है, वह प्रकारको जड़ो। २ काकोलो। उसमें विद्यमान है। मामगधविगिट, सरन, लान, जीवविचार (म• पु० जनाँक एक ग्रन्पका नाम । तरणयोस पोर लय, गोणितक इन गुणों को ही पच जीवविचारप्रकरगा (सं.पु. ) गान्सिगरि रचित जैन भूतों के गुण कह सकते हैं । (मुश्च १४१.) जीवरम (मो .) पुष्पराग, एका मलि। जोवविध जलानन्द नाटक प्रता। शोषराज दीक्षित-एक समोसमातकार । राघव धनु- सोमाति (मस्त्री .) जोव एक तिः, कधा। प्रन्या