पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३५८

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__ - जिनसेन खामो . ३१० या । अनन्तर मूलसमें भी अहंदवलि प्राचार्य के | १२... शोक पादिपुराणमें हैं और ... उत्तरपुराणमें । ममममें (जो कि महायोरखामोसे लगभग ७०० वर्ष याद | आदिपुरापमै कुल ४७ पर्व वा अध्याय है, जिनसे ४२ दुए है) चार भेद हुए-नन्दिसत. देवसमेनसह पर्व पूरे और ४३वे पक्के ३ नोक जिनमेनखामौके और सिंहस्स। इनमेसे सेनस' नामक मुमित्र शमें | वनाए हुए हैं और शेप माग गुणभद्ने पूर्ण किया है। निनसेनलामौने दीक्षा ली थी। जैम कवि इसिमलने आदिपुराण जैन साहित्यका एक परमोत्तम ग्रन्थ है। अपने 'विक्रान्तकौरवोय' नाटकमें जो प्रशस्ति लिखी है | इसकी कविता मरलता, गम्भोरता, प्रयं मोष्टय, पद उसने जाना जाता है कि 'गन्धन्तिमहाभाष्य के रचयिता, लालित्य प्रादि गुणों से परिपूर्ण है। जिनसेम व मोसो खामी ममन्तभद्राचार्य के श (गुरु-परम्परा ) में ही कविताको प्रशंसा करते हुए एक कविने कहा है - लिनसेनलामी और गुणभद्राचार्य हुए हैं। प्रयतत्व- "यदि सकतवीन्द्रप्रोजमूकरचारिणसम्सचेतास्तत्वमेव प्रत्याः । निदों ने गवेषधापूर्वक या मिड किया है कि जिनमेन | कविवरजिनसेनानायवकारविन्दप्रणादित पुराणाकर्णनामा " खामी शकसं० ७५८ तक इस धराधाममें विद्यमान थे। अर्थात् से मित्र ! यदि तुम कवियों को सूतियों को लिनसेन स्वामी द्वारा रचित श्रादिपुराण और पार्या सुन कर सरस इदय बमना चाहते हो, तो कविवर जिन. मदय ये दो अन्य प्रात एवं प्रमिद हैं। जयधवला टोका] मेनाचार्य के मुखकमलमे उदित हुए भादिपुराणके भी यवलबेलगोम्ताके प्राचीन ग्रन्यागारमें विद्यमान है, सुमनेके लिए अपने कानो को ममोप सामो। किन्तु वह मुद्रित नहीं हुई। कुछ दिन हुए सहारनपुर ___पार्वाभ्युदय--यह ३६४ मन्दाक्रान्ता हसों का एक निवासी स्वर्गीय लाला जम्म प्रसादने इसको एक प्रति खण्डकाव्य है । संस्कृत साहित्य में यह अपने ढंगका लिपि लिपिवा कराई थो; लो उनके द्वारा प्रतिष्ठित एक ही काव्य है। इसमें महाकवि कालिदासके सुप्रसिद्ध जैन मन्दिरमें विद्यमान है। हर्षका विषय है कि 'मेघदूत" कायमें जितने शोक और उन योकों के शोलापुर गासी गान्धो राधाद रामचन्द इमे प्रकाशित | जितने धरण है वे सम एक एक या दो दो करके इसके कराने के लिए उद्योग कर रहे हैं। इसमें सन्देह नहीं | प्रत्येक नोक में प्रविष्ट कर दिये गये है, अर्थात् मेघसके कि यह प्रन्य जन-साहित्यमें अद्वितीय पोर सहस्काय | प्रत्येक चरणको समस्यापूर्ति करके या कौतुकावर होगा। इसके सिवा इनके बनाये हुए वर्तमानपुराव) ग्रन्द रचा गया है। इसमें पारसनाथ स्वामोको पूर्व जनमे और पासंस्तुति नामक दो ग्रन्यों का हरिवंशपुराणमें ले कर मोक्ष प्रालि तक विस्त जीवनी बबितरे। उडेल है, किन्तु पास तक उनका कुछ पता नहीं लगा।। मेघदूत और पाचरित्रके कथानकम प्राकाश-पातालका आदिपुराण-मका यथार्थ नाम महापुराण है; पार्थक्य है, तथापि मेघदूतके चरणों को ले कर पार्वमाथ- फिन्तु ये रस महाग्रन्यको प्रपनो उममें पूर्ण न कर | का चरित्र लिखना किसना कठिन है, इसका पनुमान सके। पनम्तर उनके शिष्य खामो गुणभद्रने से पूर्ण कायरचमाके मर्म ही कर सकते हैं। ऐसो रचनापोंमें किया और प्रथम खगड़का आदिपुराण तथा हितोय क्लिष्टता और नीरसताफा होना स्वाभाविक है; किन्तु बाइका सप्तरपुराण नाम रख दिया। प्रादिपुराणमें 'पार्श्वभ्य दय' इन दोनों दोपोंसे साफ बच गया है। इसमें मुख्यतः प्रथम तीर्थदर यीपभदेव पौर प्रथम चक्रवर्ती सन्देह नहीं कि इनकी रचना कविकुलगुरु कालिदासकी भरतका परिव और उत्तरपुराणमें शेष.तेईस तीर्थ · कविताके मोहकी है। प्रध्यापक के. यो. पाठकका रोको मोवनिया है। सम्पूर्ण महापुराण, चौबोस कहना है-"......The first place among Indiatu तीर्थकर, बारह पक्रवर्ती, नो नारायण, नो प्रतिनारायण poets is alloted to Kalidas by consent of all. पौर मी बलभट्र इन ६२ असाका पुरुषों का चरित है। Jinaseva, howerer claims to be considered a वर दिगम्बर जनसम्प्रदायमें प्रथमानुयोगशा सवयं यहा। higher genius than the anther of cloud पन्य है। महापुराएको शोकमख्या २०... है. जिसमें | Messengor (AMeghaduta)" पर्यात् ' य समाधा. Vol. VIII. 80