पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३३४

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२८६ नावा (यवहोप) म ति या लाये थे, जिनमेमे बहुतमी उनकी पुस्तकमे मालामें १४ पसरीका पम्तित्व को मही 'क' पोर विवित हैं। इन मतियों में पोतन पोर साविका पंथही भका को चित नहीं है। युटापरको कतिनायो पधिक है। कुछ रौप्य प्रतिमा भी मिली है। स्य. ! इसमें यदुत कम है। याकरम नियम भी विशेष कठिन प्रतिमा भी बहुत थीं, किन्तु ये सब चोरी हो गई। एक | नहीं है। निज पोर नचना अनुमार विशेषपदमें भी यही स्यण प्रतिमा मिली थी, जिसको भोलन्दाजोनि प्रायः परिवर्तन नहीं होता। विगेषण पर विपका गला कर मोना बना लिया । 'कालियावर' नामक ग्राम | लिवन पनुमार नहीं होता। क्रियाशो रोति के लोगोंने स्वर्ण प्रतिमापौको गला कर इतना सोना नाना भागों में विभा नहीं है । कई पायको पपेशा इकट्ठा किया था कि, उयोगयों गताग्दो तक वे अजस्र कमवायका प्रयोग ही पधिक होता है। स्वर्ण पवादि और स्वर्ण मुद्रा अकिश्चित्कर पदार्यको ययहोपकी प्राचीन भाषा कयिभाषामे मिनती जुनी तरह व्यवहार करते पाये थे। है। इसके पन्नाया बहुसमी इमानिखित विगु मम्मत धारामयी प्रतिम तियों में पायोनि ब्रह्माकी मूर्ति हो। पोथियां यहाँ छ पहुंचाई गई है। इस पोषियों- उखयोग्य है-पष्टभुज, प्रचसूत्र, कमल कमण्डलु. में तापत पर निवित पोथियोंको मप्यारी पधिक ३ में लिए हुए नरमिथुनके उपर खड़े हैं। चारों पोर इम मिया मतमो भारतीय प्राचीन काग पर निको फमतदान और हम सुशोभित हैं। इसके सिवा दुर्गा पुस्तमें भी मिली है। भोर गणेशको भी धातुमयो मतियां मिली है। ईमाको ११वो गताप्दीमे हिन्दू मान्य है पपपान. प्रयतत्व त म तियाँके सिवा नाना प्रकारके | कान पर्यन्त बाया बसमे मालित्यपन्य रसे गगे थे। धातुमय पान, साम्बकुगड़, घण्टा, पञ्चपात, पक्षप्रदीप. परन्तु उम देगके लोगौन "नयमयोन पगानिनो प्रतिमा"- मुक, मुयायादि नाना स्थानौमष्टिगोचर होते है।। का पभाम है। जायाका माहित्य हिन्द माहित्यके पनु. भाषा और साहित्य ययहीयमे योमी जानेवाली भाषा करमे रचा गया है। किन्तु उस पनुकरप भीतर साधारणतः दो भागों में यिमन है - एक पण्ड-भाषा पौर यष्ट म्वाधीन चिन्ताका भी विकाग देखने में पाया । दुमरी यव-भाषा। पगड-मापा मिर्फ मजार, माण्टामा जावाके प्राचोन अन्यों में 'तान्तु-पदे-मारम' नामक पेरियम और कवन इन रेसिडेग्मियों में ही प्रचलित | सरतित्वविषयक पत्य हो पन्यतम है। यह मभवमा है। पान्य मभी स्थानों में यय-भाषा बोली जातो. १.....में रचा गया था। मदनसमको प्रतिहारे है। इन दोनों भाषामि पधिक विभिव्रता नहीं है। पाने भो जापारे लोग हिन्दू पोर बोडगामों में परि- पतमे भद माधारण है। १२५ वर्ष पहले स्कर और चित थे, यह बात दरबदर भादिक मन्दिरों में पदित अंग्रेजो भाषामें जैमा पार्थक्य था, पण्ड पोर यष-भाषा | चित्र और मूर्तियों में मान मोती एम ममय भी उतनाही पार्थ पर देखने पाता है। उसयपोको | में "ईम-वियानाममे महामारसका कुछ पंग यवःभाषका नाम "क्रम भाषा है। गिपित सम्प्रदाय भावा-भाषा सिखा गया था। मी भाषाका व्यवहार करता है। पविभापाके माय ___ "भारत-युर" नामक कायका छपनीच पय महा. रसका मधुत कुछ साहग्य है। जायाकी लिपिमाना] भारत होने पर भो, उममें बाधोनभाषों का पेट ममा. संस्कृत वर्णमालाका रूपानसर मात इस भाषामें वैगरे। मे म्योप मेदा मामक कविने दिगो मशत गम्दीका प्यवहार पधिकतामे होता है। राजा आज्ञावाला पादेयमे ११५०. निपा परयो पचर मो मधमित । परयो पपरोंमें लिपित गया था। किन्तु राममे पाने मी गातीको भाषामें यय-मायाका माम 'पगन' । यहाँको वर्णमामाम २. महाभारतका पायान निणा गया या ऐमा विमो. पालन और स पा जिप समय पार- हा पमित है। या का पथर मह सा| tको मरत वर फार्म मार हाना लि... में प्रामा