पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२९८

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नायो-नारण २६३ होनेमे तीन पद होते है-जायापती, दम्पनी और उत्तरापाढ़ा, धनिठा पोर पूरभाद्रपद, इनमे किमी भी जम्पती। यह शब्द नित्य दियवनान्त है। एक नचव, जन्म झोनमे उम यामकका भारत्रयोग होता जायो (सं• वि०) -णिनि । १ प्रययुक्त। (पु.)! है। (गेले. ) सना विरोध है कि, धनु वा मीनराशि २५ यक जातीय तालायिशेप, मगीतमें ध पदकी जातिम होनमे यदि अन्य किमी ग्राम चन्द्र माय सम्पतिका एक प्रकारका तान। योगदोपौर चन्द्रमा पारम्पति देगान या नयोगमें जायु (सं• पु०) जयति रोगान् मि-उ। १ श्रीपध, जन्म हो, सो उत्पम हुए बान्तकका शारजयोग होने पर दया। २ जायमान, यह जो पैदा छुपा हो। ३ नेता, भी वह बार नहीं ममझा जाता। यह जिमने विजय पाई हो। (वि.) ४ जयशील, जारमात (म• पु. ) भारात् उपपते जीत: भार-शन त । जीतनेवाला। उपपत्ति-जात पुत्र, यार या पागनामे पटा पा नहफा, जायन्य (सं० पु.) जिन्यम्। १ जायन्य, वह जिमने आरजा जय पाई हो। रोगविणेप, एक प्रकारको बीमारी। बारातफ (म. पु.) आरात् प्रात: सार्च-कन् । भार (म.पु.) जीयति स्त्रियाः सतीत्वमनेन करणे : उपपति वा बारमे उपव दुपा पुन, जारज। पिता जु-वन । १ उपपति, पराई स्त्रीमे प्रेम करनवाना' माता पादि गुरु मनोक पादैग विना यदि कोई भी पुरुष, यार, भागना। २ जरयिता। ३ पारदारिक, । दूसरे किमी के जरिये सन्तान टत्यय को पथवा पुवके परनीगामी। (वि.) ४ नाग करनेवाला, मारनेवाला। होते हुए भी देवर द्वारा मन्तान उत्पन करावे, तो वह कार-रूमके सम्राट की उपाधि । ( दोनों प्रकारकी) मन्ताम जारजातक हनि कारण जारक (स वि०) जीयति, ज-गन् । परिपाचक । पिताके धनकी चधिकारी नहीं हो सकती। जारकम (मलो० ) व्यभिचार, छिनाला। जारगर्भा ( म० बी०) तुद्ररोगविगेप। जारण (म.पु. ) शारयति, पिच-न्यु । ।कारक- भारज (म पु०म्बी०.) जागत् उपपतर्जायते भार-जन- ट्रयभेद, पारका ग्यारइयां मस्कार । जार्यते नेन पिए । उपपतिजात पुख, किमी स्त्रीको यह मन्तान जो काप स्पट । २ झारणमाधन ट्यद । कत्तरिम्प उमके उपपतिमे उत्पन हुई हो। धर्मशास्त्रों में नारफे | ३ जीरक, मीरा। ( राजन० ) भाव गट। (को०) दो भेद बतलाये गये हैं. कुण्ड़ और गोन्नक। "कुण्ड" ४ जोणता-मम्पादन, जनाना, मम्म करना। मनान उमे फहते हैं जो सोफे विवाहित पतिक जीवन धक मतमे-धातुपाको भन्मयत गा र फाली उसके उपपत्तिमे उत्पन हो पोर जो विवाहित पारनेको आरण कहते हैं। वचनोग पदम मोमा. पति मर जान पर उत्पम हो मे "गोलक" करते हैं। चांदो, सोपा, पारा, अभ्र, हीरा पादिको गोध कर. पी सारज पुव किमी प्रकारकं धर्म-कार्य या पिपदान | पनेक प्रकार के द्रयोंके मयोग और प्रक्रिया पुटपाक पादिफा पधिकारी नहीं होता। द्वारा उनकी चार बार अनारी या करी । म सरह भारयोग (म.पु.) जारसमा सूर्यको योगः। फनित बहुत धार करने पर मनकामी ट्रयाका रुपत्र नट ज्योतिष कहा हुमा यह योग शो वालक स-समय हो आता और वह भष्म रूप परिणत शेताम पड़ता है। अगाका यदि लग्न पौर चन्द्रमा हर. भग्नको वारे गामानुगार जारित प्रज, शान्ति म म्पतिकी दृष्टि न हो, पयवा रविझे माघ चन्द्र मगुप्त न पादि करते हैं। हो पोर पापगुस्त पन्द्रमाके माय यदि रवि न हो, तो आरित भारा पादिको मारित भी करी पोर भाम उस शामफका आरमयोग होगा। सादगी. द्वितीया या होने पर मोर या गा करने मम्मी तिमिरे, रगि, गनि या महनवार में पीर शक्तिका, प्रमिए जान दन बन दो मगर। मगगिरा, पुनर्ष मु, हरफमा मी, पिया, 'विगांपास भारय ममियाको पड़ाबम मगिन'