पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२३७

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२१० माति भौति नियमनिष्ठ भो, तो उसे ब्राह्मण कह कर निर्देश। हैं। गफ, कम्योज प्रादि पसित क्षत्रियको हपल काला किया जा मकता है। सकता है। वारय तपा पृरत सन्दमें विस्तृत विवरण दे। - उपरोक्त महाभारतके प्रमाण और पौराणिक वंश मनु फिर कहते हैं- विवरणों मे तो म्पट हो विदित होता है कि, पूर्व भमय- ____ "मुखवाहरूपरमाना या लोके जातयो यहिः। में म ममयको भामि जातिभेद न था। प्रत्य न किमो म्लेच्छवायचार्यवार ई वे दत्ययः स्मृताः ॥". व्यतिके गुण पोर कर्म द्वारा उमकी जाति या वर्णका | निराय किया जाता था। पहले के लोग पिटपुरुषों के गुण माह्मण धादि धार वीमे क्रियाकलाप भादिक और कर्माका मय तरहमे अनुकरण करते थे। इस प्रकारमे कारण निनकी गिनती वाघ आतिमें है, ये चाहे माध एक एक यश बहुम पीड़ियो तक एक ही प्रकार शर्म भाषी या म्लेच्छभापो हो; ये दस्य ही कहलाते हैं। और गुणशालो हो कर एक एक जातिरूपमें परिणत हो । मनु प्रादि स्मृतिकारों के मसमे-उच्च वर्ण के पिता गये हैं। इसी तरह चातुर्य एर्य को उत्पत्ति हुई है। और नीच वर्णकी मातासे जो सन्ताग उत्पन्न होतो, किन्तु परयति कालमें वैटेगिक भाक्रमण और वास्तविक | उसको प्रमुलोम तथा नीच वर्ष के पिता और उच्च गुणाकम के प्रभावसे नीच जातिका उभय शीय कह कर वर्णको मातामे उत्पन्न हुई सन्तानको मसिलोम व परिचय देनमे भी समाजमें विश छन्तमा उपस्थित हुई, सदर कहते हैं। अनुलोमको अपेक्षा प्रतिलोम मन्सान तभोमे भारतके जातिधर्ममें वैन सय दिखाई देने लगा। अत्यन्त हेय समझो जाती है । भगवान् मनुके मनमे- यही कारण है कि, पब चारों वीम पूर्व काल के शास्त अनुलोम सन्तान माताके दोषमे टुष्ट होने के कारण माह निर्दिष्ट पाचार व्यवहारों में बहुत कुछ पार्थक्य दृष्टिगोचर जातिके सस्कारयोग्य होतो । शूदमे प्रतिस्तोम के काम मे होता है। कोमध और पुपर ग्राह्यण तथा पंचाल शन्द उत्पन्न प्रायोगप, बत्ता, चण्डाल ये तीन जातियों को जई. देखो। दैहिक प्रादि किसी प्रकार विटकार्य में पधिकार नहो' 'प्राणा क्षत्रियो पैश्यानगो वर्णा द्विशातयः । है। इसीलिए ये लोग नराधम है। चतुर्थः एकमातिस्तु शूद्रा: नास्ति तु पंचमः ॥" (101) ब्राह्मण, क्षत्रिय, योग्य पोर शूद्र ये हो चार ____ मामलायन स्मृति प्रादि अन्यों में "पनुलोम पोर वर्ण या जातियां हैं। इनके खिया पांचौं कोई जाति प्रतिलोमा अनेक प्रकारको शानियों का ठोस । उन नहीं है। ममुके टीकाकार कुलुकभहने लिखा है- सघ सहर जातियों से भी भारत पसस्य भासियोफा "पंचमः पुनर्यणे नास्ति संकीर्णजातीना स्यसतरपत् पाविर्भाव हुपा है। मातृपितृजातिव्यतिरिकशात्यन्तर खान पर्णस्वम् ।" ___ संकर और मारतवर्ष शन्दमें उस जातियों के नाम और पपिया कोई वर्ण नहीं है। महीणं प्रर्यात् दो। ही शब्दों में उनकी उत्सति और भापार व्यवहारमादि देखना भिव वणके मियणमे उत्पन नासि लो मसतरादिकी चाहिये । तर माता पितामे होन पम्प जातित्व प्रयुता है, उसकी ___पासात्व मानवतत्वविदगण वर्तमान भारतयापियो वाम गिनतो नहोरो मकसो। . पाय, द्राविड़ पौर मोनालीय, इन तीम प्रधान वनि मनुके मतसे- विमाप्त करते है। उनके मतमे-योदिककान में भारत "दिमाता सवांमनपन्धमतारख यान। पार्य पौर पनार्य इन दो जातियों का याम था । पार्य- तान् सावित्री परिप्रशान् माया ति विनिर्दियत् ॥ गण माण, त्रिय पौर यंग इन तीन वर्षमि विमल (१०३०.)/ ये पौर पनार्य वा लणयण पादिम पधिवामिगर ' सयर्गा सीसे उत्पम विजातिगप अप नियमादिशीम शूद्र कहलाते थे। पर हमारी ममझमे यह युष्टि पौर गायित्रीपरिमार हो जाने समात्य करत मीधीम मही मात म पढ़ती। शशि पायागत