पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२२८

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माति २.३ क्योकि बहुतसे देवता भी पोहसे उत्पन्न हुए थे। प्रजा-1 कहते हैं, वे वैग्यवर्णकी उत्पत्ति है। इसके सिवा पतिने अपने पैरों से एकविश (स्तीम) निर्माण किया। यजुर्वेदको भी क्षत्रियको योनि प्रर्यात् उत्पत्तिस्थान पीछे अनुष्ट छन्द, वैराजसाम, मनुषयों में शूद्र और कहते हैं । सामवेट वानको प्रसूति अर्थात् मामयेदसे - पशुमों में प्रश्नों की सृष्टि हुई । ये पख और शूद्र ही भूत- पानीको उत्पत्ति हुई है। • संकमी है, (विशेषत:) शूद्र यजमें अनुपयुक्त है। क्योंकि } --भतपयद्राधयामें लिखा है-- एकविंश (स्तोम)के बाद फिर किमी देवताको सृष्टि "भूरिति वै प्रजापतिम्रा मजनमत भुवः इति क्षत्रं परिति नहीं हुई है। पैरों से उत्पन्न होने के कारण दोनों (अग्न विशम् । एतावद्व इदं सर्व याबद्मन सत्र विट् ।' ( २ १३) और शूद्र) ही पैरों से जीवनकी रक्षा करेंगे। ____ 'भू' इम अय्दको उच्चारण करके प्रजापतिने बाध्य- . 1-याजसनेयस हितामें दूसरी जगह लिखा है गोको उत्पन्न किया था। इमो प्रकार उन्होंने भवः' __"तिमूभिरस्तुपत ब्रह्मासृज्यत ब्रह्मणस्पतिरधिपतिरासीत्" शब्द उच्चारण कर नत्रियों और 'स्प:' गद उचारण फर • (१४१२८) पंचदशमिरस्तुपत क्षत्रमहज्यते इन्द्रोऽधिपतिरासीत् । वैश्योको सृष्टि की थी। यह ममम्त विलमण्डली (११२९) नवदशभिरस्तुषत शूदार्यावसृज्येतामहोराने अधि. प्रामण, क्षत्रिय और वैश्य है। पत्नी भारताम् ।" ( १४.३०) ___0-तैत्तिरीय वाहाणमें एक जगह लिखा है- प्रजापति के प्राग, उदान और व्यान इन तीनों द्वारा दियो वै वर्ग प्रामाणः असू शूदः।" (३२010) स्तव कारने पर वाहापोंको सृष्टि हुई, जिनके ब्रह्मस्पति देवासे प्राणवण और असुरसे शूद्रवर्ण जनमा है। मधिपति हुए । एक रात और पेरको अङ्गलि दश, दोनों और एक जगह लिखा है- हाय और दोनों वाहु तथा नाभिका जईभाग, इन पन्द्रहों। "गसतो ये एप सम्भूतो यत् शरः ।" ( ३१२३१) । धारा स्तव करने पर क्षत्रियों को सृष्टि हुई, जिनके प्रमत्मे शूटू उत्पन्न हुए हैं। इन्द्र अधिपति हुए। दशपालि और गरीरके ऊपर यह तो छुपा वेदका कयन । मनुमक्षिता, फर्मपुराण नीचेके नव प्राण, इन उबीसों हारा स्तय करने पर और भागवतपुराणमें भी पुरुपयूकारी अनुसार पार वैग्यो तथा शूदो की उत्पत्ति हुई, जिनके रात भोर | वोंकी उत्पत्ति कथा वणित है। किन्न पन्चान्य -दिन घधिपति हुए। ( महीपर) पौराणिक ग्रन्थों में मतभेद पाया जाता है।

. ४-अथवं वेदमें एक जगह निम्ता है-

-प्रमाण्डपुराणमें लिखा है- रायस्यैवं विद्वान् धारयो राज्ञोऽतिथिहामागच्छेत् । योसमेनमा "ममा स्वयम्भूर्भगवान् दृष्ट्वा सिदित कशाम् । • मनो मानयेस्तथा समायना पचवे तथा राष्ट्राय ना वृश्यते । सतः प्रमत्यपोषध्यः पपच्यात अहिरे. भतो ये माझं च च च चोदतिष्टताम् ।"(अथर्य. १५1१०11-1) | संविदायान्तु पारीयां ततस्तामा स्वयम्भुवः । यदि राजाके घर पर ऐसे विज्ञान प्रात्य अतिथि के मर्यादा पापयामास चारपाई परसरम् ॥ रूपमे पावें, तो राजाको चाहिये कि, वे अपने से उनका ये ये परिपझौताररताणामासन् विविधात्मका: ज्यादा सम्मान करें। ऐसा करनेमे उनके राजसम्मान इतरेया कृतमागान् पापयामाग:त्रियान्। ,वा राजाको कुछ भी क्षति नहीं होती। इन्हीं (व्रात्य ). .उपतिष्ठन्ति पे तान् 2 यावन्तो निभंगारवया । सेवामा और क्षत्रिय उत्पन हुए हैं। सत्यं मन यया भूतं सुबन्तो प्रायनाच से -त्तिरोय माझे मसमे- चान्देऽप्यपलारनपा वैरमरमरास्थिताः । "सर्व हे मागा हेव राष्ट्र ग्भ्यो जातं वै पगमाः। कीनाशा नाशयन्ति म पृथियो मागसन्द्रिताः - यजुद क्षत्रियस्यानि सामवेदो मादाणानां प्रसूतिः ।। धेश्याने तु साना कीनाशान् तिन् !. चोचन्तदव यन्तार परिवाद । ... यह समस्त विस ग्रामा पारा राष्ट पा है। कोई। मादपुरापने "पथा घा" ऐगा पाठहै