पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१९

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२४ __. जन्माष्टमी रोहिगोमत कक्षा है। सौ एकादशी व्रतको अपेक्षा भी अपने नामरूप मन्त्रमे वासुदेव. देवको, वसुदेव, यगोदा, उमका फल अधिक है। नन्द, रोहिणो, चण्डिका, वामदेव, दस, गर्ग तथा माती पोर वैष्णोंके मतभेदमे जन्माष्टमोके व्रत ब्रह्माको पूजा कर धोवत्सवक्षः पूर्णा नीलोत्पलदतच्युमं" को व्यवस्या अलग अलग है। स्मान में रघुनन्दन भधा-! यादि भविषोत्तरोय ध्यानपूर्व क "मों प्रीकृष्णाय नमः चार्य और माधयाचाय को व्यवस्या एक जैसो नहीं। मन्त्री योकणको पूजा करनी पड़तो है। पर्व, नाम, होती । रघुनन्दनके मतमे वशिष्ठ प्रतिके वचनानुसार नैवेद्य त तिल होम और भयन में विशेष विशेष मन्त्र जिस दिन जयन्तीयोग प्राता, जन माटमो व्रत किया है। योक्षणको पूजाके बाद योपूजा पीर उसके पीछे जाता है। किन्तु दोनों दिन वह योग पड़नसे दूसरे देयको पूजा कर्तव्य है। सपा यगोदा प्रभृतिको स्वर्ण दिन व्रत होता है। जयन्तीयोग न मिलनेसे रोहिग्योयुता। पादि निर्मित प्रतिमूर्ति स्थापन करते है। पूजाके पनामें , पटमोम प्रत करनेको व्यवस्था है। यदि दोनों दिन गुड़ और घीने वसुधारा दी जाती है। उसके बाद नाही. रोमियोयुका पटमी हो, तो दूसरे दिन व्रत करना छेदन, षष्ठीपूजा पीर नामकरण प्रादि संस्कार करना चाहिये। रोहिणी योग न होनेसे जिस रोजनिशीथ | चाहिये। इन सब कार्यों के पीछे चन्द्रोदयके समय चन्द्रके समयमें अष्टमी रहे. जम माष्टमीका प्रत करना चाहिये। उद्देश हरिस्मरणपूर्व क पात्रों जजपुष्प, पन्दन तथा दोनों दिन नियोष समय में प्रष्टमो मिलने या किसी भी | कुश से "क्षीरोदार्णरसम्भूत" इत्यादि मम्बसे पय॑दे यो दिन न रहनेमे परदिन हो कर्तव्य है। वैष्णयो के ) स्मायाः पतये तुभ्यं" इत्यादि मन्त्र घन्ट्रको प्रणाम करते मतसे जिप्स रोज पनमा भो सप्तमो होतो, जम्माष्टमी है। चन्द्रप्रणाम के बाद "भनपं वामन" इत्यादि मन्महारा व्रत नहीं करते । नक्षत्रयोगके प्रभावमें नवमीयुक्त नामकोसन एवं "प्रणमामि सदा देव" स्यादि-मन हारा पटमी पाद्य है, किन्तु सममोविद्धा अष्टमी नक्षत्रयुल योगको प्रणाम कर "प्राहिमा" इत्यादि मन्स मे प्रार्थना औते भी छोड़ देना चाहिये । (हरिभफिनिसाप) " को जाती है। फिर स्तवपाठ पोर योहणका जन्म - भविष्यपुराण और भविषोत्तरमें लिखा है-उपवासके हत्तान्त जो अष्टमीको कथाम उलिखित है, श्रवण कर पूर्ष दिन हविषा बना कर खाना चाहिये। इस दिन | नाचते गाते रावि बिता देना चाहिये । कृष्ण देतो। दूसरे मात करय प्रादिके समानान्तमें उपवासका सदस्य दिन ममेरे विधिपूर्वक योजष्ण की पूजा कर दुर्गामहो। करते। सममो सिथिरहने उममें "सप्तम्पान्तियावा. | सव करते हैं। उसके बाद ब्राधणभोजन करा और र" जैमा तिथिका उलेख होगा। सहल्या याद | उनको सवर्ण प्रादि दक्षिणाम सन्तुष्ट कर "सायि स. "धर्माय गमा धराय नमः धर्मपतये नमः, धर्मसम्भवाय नम:| राप" इत्यादि मन्यमे पारण तथा 'भूताय इत्यादि मन्त्रमे 'गोविन्दाय नमः" पादि उचारप्पपूर्वक प्रणाम कर नित्र उत्सव ममापन किया जाता है। स्त्रियों और शूद्रोको' तिखित मन्द्र पढ़ना चाहिये- पूजा पादिम मन्ध पढ़ना नहीं पड़ता । (तिथितरंथ) ' पापुदेवं समुदिरस सर्वपारप्रशान्तये । रमात रमुनन्दनने ब्रह्मदेवत प्रभृति पुराणों के बचना.. उपयामें करियामि हम तुभ्यं नमाम्यहम् ॥ नुमार पारण सम्यन्ध ऐसो व्यवस्था बतलायी है-उप. 7 मं गामोदेवी नमार सरोहिनीम् । 'वामके दूसरे दिन तियि पोर नक्षत्र 'दोनौका पवमान __“मतियोमासेन मोऽहमपरेऽहनि । होनेमे पारण करना पड़ता है। जिस स्थल पर महानियामे __ एनसो मोक्षकामोऽरिम यगोविन्दनियोनिशम् । पहले तिथि पीर मजयम किमी एफका ध्यसान पाता।

तम्मे मुंप माहिपनिये क्षधामा

पौर दूमीफा पयसाम महानियाको पथवा इतके बाद • मममम या समपा पटकम् । दिपस्ताता. एकके प्रवमानसे हो पारपका काम चल जाता उप्रगाशा गोबिन्द प्रमोद पुजोरतम ।" अब महानिगाके ममय तिथि पोर मचा दोनों शिपायो रातका प्राय पादि ममः गम्दान्त अपने ' रहते का उत्सव पोहे प्रातःकाल पारप करते।