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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।

के रहनेवालों को वे हिन्दी कहते हैं। "हिन्दी" मुसल्मान भी हो सकते हैं और हिन्दू भी। अमीर खुसरो ने "हिन्दी" को इसी अर्थ में लिखा है। इस हिसाब से जितनी भाषायें इस देश में बोली जाती हैं सभी हिन्दी कही जा सकती हैं।

जिसे हम हिन्दी या उच्च हिन्दी कहते हैं वह देवनागराक्षर में लिखी जाती है। इसका प्रचार कोई सौ-सवा सौ वर्ष के पहले न था। उसके पहले यदि किसी को देवनागरी में गद्य लिखना होता था तो वह अपने प्रान्त की भाषा––अवधी, बघेली, बुँदेली या व्रज-भाषा आदि––में लिखता था। लल्लू-लाल ने प्रेमसागर में पहले पहल यह भाषा देवनागरी अक्षरों में लिखी, और उर्दू लिखनेवाले जहाँ अरबी-फ़ारसी के शब्द प्रयोग करते वहाँ उन्होंने अपने देश के शब्द प्रयोग किये। याद रहे, लल्लूलाल ने कोई भाषा नहीं ईजाद की। उनके प्रेमसागर की भाषा दोआब में पहले ही से बोली जाती थी। पर उसी का उन्हों ने प्रेमसागर में प्रयोग किया और आवश्यकतानुसार संस्कृत के शब्द भी उसमें मिलाये। तभी से गद्य की वर्तमान हिन्दी का प्रचार हुआ। गद्य पहले भी था। कितनी ही पुस्तकों की टीकायें आदि गद्य में लिखी गई थी। पर वे सब प्रान्तिक भाषाओं में थीं। लल्लूलाल ने वर्तमान हिन्दी की नींव डाली और उसमें उन्हें कामयाबी भी हुई। यहाँ तक कि अब स्वप्न में भी किसी को गद्य लिखते समय अपने प्रान्त की अवधी, बघेली या व्रज-भाषा याद नहीं आती। पद्य लिखने में वे चाहे उनका भले ही अब तक पिण्ड न छोडें।