बोली बुँदेली ही है। छिंदवाड़ा और हुशङ्गाबाद तक के कुछ हिस्सों में यह बोली जाती है। बाइबल के एक-आध अनुवाद के सिवा इसमें भी कोई साहित्य नहीं है। ब्रज भाषा, क़न्नौजी और बुँदेली आपस में एक दूसरी से बहुत कुछ मिलती-जुलती हैं।
हिसार, झींद, रोहतक, करनाल आदि ज़िलों की भाषा बाँगरू है। इन प्रान्तों की बोलियों के हरियानी और जाटु आदि भी नाम हैं, पर बाँगरू नाम अधिक सयुक्तिक और अधिक व्यापक है; क्योंकि बाँगर में, अर्थात् पंजाब के दक्षिण-पूर्व जो ऊँचा और खुश्क देश है उसमें, यह बोली जाती है। देहली के आस-पास की भी यही भाषा है। पर करनाल के आगे यह नहीं बोली जाती। वहाँ से पंजाबी शुरू होती है।
दक्षिण के मुसल्मान जो हिन्दी बोलते हैं उसका नाम दक्षिणी हिन्दी रक्खा गया है। इस हिन्दी के बोलनेवाले बम्बई, बरोदा, बरार, मध्यप्रदेश, कोचीन, कुर्ग, हैदराबाद, मदरास, माइसोर और ट्रावनकोर तक में पाये जाते हैं। ये लोग अपनी भाषा लिखते यद्यपि फ़ारसी अक्षरों में हैं, तथापि फ़ारसी शब्दों की भरमार नहीं करते। ये लोग मुझे या मुझको की जगह "मेरे को" बोलते हैं और कभी-कभी "में खाना खाया" की तरह के "ने" विहीन वाक्य प्रयोग करते हैं। दक्षिणी हिन्दी बोलनेवालों की संख्या थोड़ी नहीं है। कोई ६३ लाख है।