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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।

काम कर रहे हैं। इस खोज में जो प्रमाण उनको मिले हैं उन्हीं के आधार पर उन्होंने अपनी राय क़ायम की है। एक बात तो बिलकुल साफ़ है कि हिन्दी में संस्कृत शब्दों की भरमार अभी कल से शुरू हुई है। परिमार्जित संस्कृत चाहे सर्वसाधारण की बोली कभी रही भी हो, पर उसके बाद हज़ारों वर्ष तक जो भाषायें इस देश में बोली गई होंगी उन्हीं से आज-कल की भाषाओं और बोलियों की उत्पत्ति मानना अधिक सम्भवनीय जान पड़ता है। जिस परिमार्जित संस्कृत को कुछ ही लोग जानते थे उससे सर्वसाधारण की बोलियों और भाषाओं का उत्पन्न होना बहुत कम सम्भव मालूम होता है।

यह निबन्ध यद्यपि हिन्दी ही की उत्पत्ति का दिग्दर्शन करने के लिए है तथापि प्रसङ्गवश और और भाषाओं की उत्पत्ति और उनके बोलनेवालों की संख्या आदि का भी उल्लेख कर दिया गया है। आशा है पाठकों को यह बात नागवार न होगी।