थी। इसका विस्तार बहुत बड़ा था। वर्तमान बिहारी भाषा
उसी से उत्पन्न है। इस अपभ्रंश की एक बोली अब तक
अपने पुराने नाम से मशहूर है। वह आज-कल मगही कहलाती है। मगही शब्द मागधी का ही अपभ्रंश है। मागध
अपभ्रंश की किसी समय यही प्रधान बोली थी। यह अपभ्रंश
भाषा पुरानी पूर्वी प्राकृत की समकक्ष थी। ओडरी, गौड़ी
और ढक्की भी उसी के विकास-प्राप्त रूप थे। उसके ये रूप
बिगड़ते-बिगड़ते या विकास होते-होते, हो गये थे। मगही,
गौड़ी, ढक्की और ओडरी इन चारों भाषाओं की आदि जननी
वही पुरानी पूर्वी प्राकृत समझना चाहिए। उसी से मागधी
का जन्म हुआ और मागधी से इन सब का।
मागधी के पूर्व गौड़ अथवा प्राच्य नाम की अपभ्रंश भाषा बोली जाती थी। उसका प्रधान अड्डा गौड़ देश अर्थात् वर्तमान मालदा ज़िला था। इस अपभ्रंश ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व तक फैलकर वहाँ वर्तमान बँगला भाषा की उत्पत्ति की।
प्राच्य अपभ्रंश ने कुछ दूर और पूर्व जाकर ढाका के आस-पास ढक्की अपभ्रंश की जड़ डाली। ढाका, सिलहट, कछार और मैमनसिंह ज़िलों में जो भाषा बोली जाती है वह इसी से उत्पन्न है।
इस प्राच्य या गौड़ अपभ्रंश ने हिन्दुस्तान के पूर्व, गङ्गा के
उत्तरी हिस्सों तक, कदम बढ़ाया। वहाँ उसने उत्तरी बङ्गला की
और आसाम में पहुँच कर आसामी की सृष्टि की। उत्तरी और
पूर्वी बंगाल की भाषायें या बोलियाँ मुख्य बंगाल की किसी