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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।


लक्षण अलग-अलग है। पश्चिमी प्राकृत का मुख्य भेद शौरसेनी है। वह शूरसेन प्रदेश की भाषा थी। गंगा-यमुना के बीच के देश में, और उसके आसपास, उसका प्रचार था। पूर्वी प्राकृत का मुख्य भेद मागधी है। वह उस प्रान्त की भाषा थी जो आजकल बिहार कहलाता है। इन दोनों देशों के बीच में एक और ही भाषा प्रचलित थी। वह शौरसेनी और मागधी के मेल से बनी थी और अर्द्ध-मागधी कहलाती थो। सुनते हैं, जैन तीर्थङ्कर महावीर इसी अर्द्ध-मागधी में जैन-धर्म का उपदेश देते थे। पुराने जैन-ग्रन्थ भी इसी भाषा में हैं। अर्द्ध-मागधी की तरह की एक और भी भाषा प्रचलित थी। उसका नाम था महाराष्ट्री। उसका झुकाव मागधी की तरफ़ अधिक था, शौरसेनी की तरफ़ कम। वह बिहार और उसके आसपास के ज़िलों की बोली थी। यही प्रदेश उस समय महाराष्ट्र कहलाता था। प्राकृत-काव्य विशेष करके इसी महाराष्ट्री भाषा में हैं।


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