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तीसरा अध्याय
प्राकृत-काल

आर्य्य लोगों की सबसे पुरानी भाषा के नमूने ऋग्वेद में हैं। ऋग्वेद के मन्त्रों का अधिकांश आर्यों ने अपनी रोज़मर्रा की बोल-चाल की भाषा में निर्म्माण किया था। इसमें कोई सन्देह नहीं। रामायण, महाभारत और कालिदास आदि के काव्य जिस परिमार्जित भाषा में हैं वह भाषा पीछे की है; वेदों के ज़माने की नहीं। वेदों के अध्ययन, और उनके भिन्न-भिन्न स्थलों की भाषा के परस्पर मुक़ाबले, से इस बात का बहुत कुछ पता चलता है कि आर्य लोग कौनसी भाषा या बोली बोलते थे।

प्राकृत के तीन भेद

अशोक का समय ईसा के २५० वर्ष पहले है और पतञ्जलि का १५० वर्ष पहले। अशोक के शिला-लेखों और पतञ्जलि के ग्रन्थों से मालूम होता है कि ईसवी सन् के कोई तीन सौ वर्ष पहले उत्तरी भारत में एक ऐसी भाषा प्रचलित हो गई थी जिसमें भिन्न-भिन्न कई बोलियाँ शामिल थीं। वह पुरानी संस्कृत से निकली थी जो उस ज़माने में बोली जाती थीं जिस ज़माने में कि वेद-मन्त्र की रचना हुई थी--अर्थात् जो पुरानी संस्कृत वैदिक ज़माने में बोल-चाल की भाषा थी उसी से यह नई भाष