बना। कुछ कभी बना है, कुछ कभी। उसकी रचना के
समय में बड़ा अन्तर है। फिर एक ही जगह उसकी रचना
नहीं हुई। कुछ की रचना क़न्धार के पास हुई है, कुछ की
पंजाब में, और कुछ की यमुना के किनारे। जिन आर्य्य ऋषियों
ने वेदों का विभाग करके उनका सम्पादन किया, और उनको
वह रूप दिया जिसमें उन्हें हम इस समय देखते हैं, उन्होंने रचनाकाल और रचना-स्थान का विचार न करके जिस भाग को जहाँ
उचित समझा रख दिया। इसी से रचना-काल के अनुसार
भाषा की भिन्नता का पता सहज में नहीं लगता।
जैसा ऊपर कहा जा चुका है, सब आर्य्य एक ही साथ
पंजाब में नहीं आये। धीरे-धीरे आये। डाकृर हार्नली आदि
विद्वानों का मत है कि हिन्दुस्तान पर आर्य्यों की मुख्य-मुख्य
दो चढ़ाइयाँ हुई। जो आर्य्य, इस तरह, दो दफ़ा करके पंजाब
में आये उनकी भाषाओं का मूल यद्यपि एक ही था, तथापि
उनमें अन्तर ज़रूर था। अर्थात् दोनों यद्यपि एक ही मूल-भाषा
की शाखायें थीं, तथापि उनके बोलनेवालों के अलग-अलग हो
जाने से, उनमें भेद हो गया था। चाहे आर्य्यों का दो दफ़े में
पंजाब आना माना जाय, चाहे थोड़ा थोड़ा करके कई दफ़े में,
बात एक ही है। वह यह है कि सब आर्य्य एक दम नहीं
आये। कुछ पहले आये, कुछ पीछे। और पहले और पीछे वालों की भाषाओं में फ़रक़ था। डाकृर ग्रियर्सन का अनुमान
है कि आर्य्यों का पिछला समूह शायद कोहिस्तान होकर पंजाब
आया। यदि यह अनुमान ठीक हो तो यह पिछला समूह उन्हीं