अनेक विद्वानों ने प्रबल प्रमाणों से हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि की योग्यता प्रमाणित कर दी है।
हिन्दी भाषा की उत्पत्ति कहाँ से है? किन पूर्ववर्त्ती भाषाओं से वह निकली है? वे कब और कहाँ बोली जाती थीं? हिन्दी को उसका वर्त्तमान रूप कब मिला? उर्दू में और उसमें क्या भेद है? इस समय इस देश में जो और भाषायें बोली जाती हैं उनका हिन्दी से क्या सम्बन्ध है? उसके भेद कितने हैं? उसकी प्रान्तिक बोलियाँ या उपशाखायें कितनी और कौन-कौन हैं? कितने आदमी इस समय उसे बोलते हैं? हिन्दी के हितैषियों को इन सब बातों का जानना बहुत ही ज़रूरी है। और प्रान्तवालों को तो इन बातों से अभिज्ञ करना हम लोगों का सब से बड़ा कर्तव्य है क्योंकि जब हम उनसे कहते हैं कि आप अपनी भाषा को प्रधानता न देकर हमारी भाषा को दीजिए—उसी को देश-व्यापक भाषा बनाइए—तब उनसे अपनी भाषा का कुछ हाल भी तो बताना चाहिए। अपनी भाषा की उत्पत्ति, विकास और वर्तमान स्थिति का थोड़ा-सा भी हाल न बतलाकर, अन्य प्रान्तवालों से उसे क़बूल कर लेने को प्रार्थना करना भी तो अच्छा नहीं लगता।
इन्हीं बातों का विचार करके हमने यह छोटीसी पुस्तक लिखी है। इसमें वर्त्तमान हिन्दी की बातों की अपेक्षा उसकी पूर्ववर्तिनी भाषाओं ही की बातें अधिक हैं। हिन्दी की उत्पत्ति के वर्णन में इस बात की ज़रूरत थी। बंगाले में भागीरथी के किनारे रहनेवालों से यह कह देना काफ़ी नहीं कि गङ्गा हर-