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३०:हिन्दी-निरुक्त
 

नष्ट भी हो जायगा । सो, इस तरह वर्ण-व्यत्यय से 'भगिनी' का 'बहिनी' बन गया है वर्ण-व्यत्यय का मतलब यही है कि किसी वर्ण का सरक कर स्थान बदल देना। फिर कभी उसके उस रिक्त स्थान पर कोई भगोड़ा वर्ण आ जमता है, कभी नहीं । 'भगिनी' का 'म्' विलकुल उड़ ही गया । 'ह' के स्थान परिवर्तन से यह वर्ण-व्यत्यय का उदाहरण । संस्कृत का 'संघटन' शब्द हमारे यहाँ 'संगठन' बन गया है । से ह, उठा और ट् के साथ आ कर बैठ गया। वहाँ 'ग्' रह गया, यहाँ ह' हो गया-संगठन' । 'संघटन' और 'संगठन' के बोलने-सुनने में जो अन्तर है, उन की व्याख्या करना आवश्यक नहीं । 'गठन' के अर्थ में भी विशेषता है। शारीरिक गठन' को 'शारीरिक घटन' नहीं कह सकते। इसी तरह ‘साँझ आदि शब्द वर्ण-व्यत्यय ने बनाये हैं । 'सन् ध् या। 'य' 'आ' को वहीं छोड़ 'न्' तथा 'ध्' के बीच में आ बैठा । 'ह.' ने 'द्को मार भगाया। वेचारा अल्पप्राण था! ज और ह मिल कर 'झ्' के रूप में आ गये। 'न्' अनुस्वार बन गया और हो गया- 'संझा। इसी में स्वर-व्यत्यय कर के 'साँझ' है। गढ़ना' हिन्दी की एक क्रिया है, जिस से 'सुगढ़' बना-अच्छी तरह गढ़ा या बनाया हुआ, सर्वाङ्ग सुन्दर। परन्तु 'सुगढ़ तो अच्छे किले को भी कह सकते हैं न ! इस लिए हिन्दी ने वर्ण-व्यत्यय कर के 'सुघड़ कर लिया। ह' उधर से इधर और महाप्राणता भी उधर से इधर--सुघड़। इस 'ई' को 'र' से बदल कर 'सुघर' भी बोलते हैं: पर कम ! ___ संस्कृत का 'मिहिर' शब्द भी कदाचित् 'ह' के फेर-फार से ही बना है । सूर्य 'हिम' का 'ईरण' करता है उसे दूर फेंकता है, नष्ट करता है। इस लिए-~'हिमीर। ई को ह्रस्व कर के और 'ह' के उलट-फेर से मिहिर' । हिन्दी का 'मिहाना' शब्द भी कुछ इसी तरह का है। बरसात में चने मिहा जाते हैं-हिमायमान हो जाते हैं, सूखा- फ्न खो देते हैं । हिम से 'मिह और फिर इस का नाम-धातु' रूप । १५-हिन्दी को 'ने' विभक्ति हिन्दी की प्रमुख संज्ञा-विभक्ति 'ने' का निर्माण भी वर्ण-व्यत्यय से ही हुआ है; यह निश्चयपूर्वक कहने की स्थिति में हम हैं ! संस्कृत