पृष्ठ:हिन्दी निरुक्त.pdf/१२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४:हिन्दी-निरुक्त
 

हिन्दी-निम्न लें। अ. आ का उच्चारण स्वलन्त्र रूप से भी कर सकते हैं। इसीलिए पेम्बर' कहलाते हैं। क, ख, ग आदि व्यंजन हैं, जिनके साथ साधारणतः 'लगा रहता है, उच्चारणार्थ । ४-स्वरों के दो भेद स्वरों के दो भेद हैं--(१) मूल स्वर और (२) संयुक्त स्वर । अ, इ, उ, ऋ (और संस्कृत में ल भी) मूल स्वर हैं। ए, ओ, ऐ, औ ये चार संयुक्त स्वर हैं । 'अ' और 'इ' मिलकर 'ए' बनता है और 'अ', 'उ'मिलकर ओ । इसी तरह ऐ और औ भी। परन्तु इन संयुक्त स्वरों की भी सत्ता अलग मान ली गयी, दो-दो का 'फेडरेशन' एक इकाई । तब हिन्दी में आठ स्वर हुए, चार मूल स्वर और चार संयुक्त । ५-व्यंजन भी भूल तथा संयुक्त स्वरों की तरह वर्गीय व्यंजन (क ले म तक अक्षर) भी 'मूल' और संयुक्त' इन दो श्रेणियों में वाँटे जा सकते हैं। वर्गों के प्रथम तथा तृतीय अक्षर 'मूल व्यंजन' हैं; कदाचित् पंचम भी । परन्तु वर्गीय द्वितीय तथा ऋतुर्थ अक्षर 'संयुक्त हैं। कारण, क् के साथ ह मिलने से 'ख' है, और म् के साथ उसे रखने से 'ध' बन जाता है। संस्कृत- व्याकरण में अनेक जगह ग और ह को मिलाकर 'घ' तथा 'द्' आर 'ह' को मिलाकर 'ध' बनने-बनाने का उल्लेख है। यदि वहाँ से (घ, ध, आदि से)ह को अलग कर लिया जाता है, तो सन्धि-विच्छेद कर दिया जाता है, तो फिर वही म् और द् शेष रह जाता है । सो, वर्गीय अक्षरों के द्वितीय तथा चतुर्थ संयुक्त व्यंजन स्पष्ट हैं । विचार से देखा जाय, तो वर्गीच पंचमाक्षर भी 'संयुक्त' ही हैं। तभी तो वे 'द्विस्थानीय' कहलाते हैं । परन्तु द्वितीय-चतुर्थ अक्षरों की संयुक्तता तो बहुत प्रत्यक्ष है ! आगे निरुक्त में यह चीज पग-पग पर सामने आयेगी, इसीलिए इतना लिखा गया। ६-अन्तःस्थ और ऊष्म य, र, ल, व ये चार अक्षर 'अन्तःस्थ कहलाते हैं। जिन्हें (विसर्ग- लोप से) 'अन्तस्थ' भी कहते हैं। ये बीच में आते-जाते रहते हैं न ! 'पति' की प्रेरणा हुई, तो बीच में य आ गया---'पाठयति' । हिन्दी