पहला अध्याय कभो नियमों का ठोक-ठीक पालन उनको तोड़कर ही किया जा सकता है । नियमों के भी अपवाद होते हैं, यह उनके ध्यान में न रहा । इसका परिणाम यह हुआ कि हिंदुत्व के धार्मिक नियमों का वास्तविक अभिप्राय दृष्टि से अोझल हो गया और समस्त हिंदू जाति केवल शब्दों की अनु- गामिनी बन गई । जो नियम समाज में शांति, मर्यादा और व्यवस्था रखने के लिये बनाए गये थे, वे इस प्रकार समाज में वैषम्य और करता के विधायक बन गये । जीवन के कार्य-क्रम के चुनाव में व्यक्तिगत प्रवृत्ति का प्रश्न ही न रहा । जिस वर्ण में व्यक्ति-विशेष ने जन्म पा लिया, उस वर्ण के निश्चित कार्य-क्रम को छोड़कर और सब मार्ग उसके लिये सर्वदा के लिये बंद हो गए। उद्यम का विभाजन तथा कार्य-व्यापार में कौशल- प्राति का उपाय न रहकर वर्ण-विभाग सामाजिक विभेद हो गया। जिसमें कोई उच्च और कोई नीच समझा जाने लगा ! शूद्र, जो नीचतम वर्ण में थे, सभ्य-समाज के सब अधिकारों से वंचित रह गए । वेद और धर्मशास्त्रों के अध्ययन का उन्हें अधिकार न था । उनमें से भी अंत्यजों के लिये तो देव-दर्शन के लिये मंदिर प्रवेश भी निषिद्ध था । उनका स्पर्श तक अपवित्र समझा जाता था 1....... शताब्दियों तक इस दशा में रहने के कारण शूद्रों के लिये यह सामान्य और स्वाभाविक सी बात हो गई थी। इसका अनौचित्य उन्हें एकाएक खटकता न था । परंतु मुसलमानों के संसर्ग ने उन्हें जागरित कर दिया और उन्हें अपनी स्थिति की वास्तविकता का परिज्ञान हो गया । मुसलमान-मुसलमान में कोई भेद-भाव न था। उनमें न कोई नीच था, न ऊँच । मुसलमान होने पर छोटे से छोटा व्यक्ति अपने आपको सामाजिक दृष्टि में किसी भी दूसरे मुसलमान के बराबर समझ सकता था । अहले-इस्लाम होने के कारण वे सब बराबर थे । पर हिंदू धर्म में यह संभव न था। इस प्रकार के घृणाव्यंजक विभेदों को हिंदू समाज में रहने देना
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