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घोर परिश्रम किया , और इतनी साधना के बाद जब अाज हमें उनके जैसे कर्मठ एवं ठोस साहित्यकारों की आवश्यकता थी तब वे हमारे बीच से उठ गये। उनके निधन से हिन्दी साहित्य को एक ऐसी भारी क्षति हुई है जिसकी पूर्ति सरलता से नहीं हो सकती। श्री जुयाल जी और श्री भृगुराज जी के प्रयत्न से यह कृति हिंदी में पा रही है और मेरा विश्वास है कि यह उनके द्वारा लिखे गये समस्त साहित्य को संसार के सामने लाने के प्रयत्न का श्री गणेश है । इस पुण्यकार्य में किसी भी रूप में सहयोग देने के लिए मैं सदा ही तत्पर हूँ और अपने को गौरवान्वित समझता हूँ। हिन्दी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय अनंत चतुर्दशी, २००७ वि० भगीरथ मिश्र