धारणाओं के आधार पर हो, बाहर से प्राकर पंजाब में रहनेवाला माना, ह जहाँ यह प्रकाशित हो चुका है कि वे वस्तुत: लाहौर जिले के पंडोल गाँव में सं० १७३७ में उत्पन्न हुए थे, उनके पिता का नाम मुहम्मद दरवेश. था और वे दर्शनी नाम साधु के शिष्य भी रह चुके थे। उनकी मृत्यु सं० १२१० में हुई थी और उनकी रचनाएँ भी अब कुनूर निवासी प्रेमसिंह ने प्रकाशित कर दी हैं । डा० बड़थ्वाल ने इसी प्रकार बाबा धरनीदास का भी उत्पन्न होना सं० १७१३ ( सन् १६५६ ई० ) में बतलाया है जिसके लिए कोई आधार नहीं । इस संत ने अपनी रचना 'प्रेमप्रगास' के अंतर्गत स्वयं कहा है कि सं० १७१३ में जब शाहजहाँ का अधिकार छीना गया और औरंगजेब की 'दुहाई' फिरी उस समय मेरे पिता का भी देहांत हो गया और इस बात का मेरे ऊपर इतना प्रभाव पड़ा कि मुझमें पूरी विरक्ति जाग्रत हो गई और मैंने 'वैरागी भेष' धारण कर लिया। अत- एव सं० १७१३, बाबा धरणीदास, का 'जन्मकाल' न होकर अधिक से अधिक उनका 'प्रबुद्धकाल' कहा जा सकता है। शिवनारायणो संप्रदाय के संबंध में लिखते हुए उन्होंने, इसी प्रकार कहा है कि उसका प्रचार अब नहीं रह गया है और वह आज कल प्रायः नष्ट सा हो गया है । किन्तु बात ऐसी नहीं है । शिवनारायणी संप्रदाय का प्रचार, इसके प्रवर्तक के जन्म. स्थान जिला बलिया के अतिरिक्त, गाजीपुर, आजमगढ़, कानपुर, लाहौर कलकत्ता, बंबई, आदि नगरों में और इनके आस पास अब तक भी पाया जाता है और इसके पूज्य 'ग्रंथ अन्यास' का प्रकाशन कम से कम तीन स्थानों से तो हो ही चुका है। डा० बड़थ्वाल ने निरंजनी धारा व निरंजनी संप्रदाय को बहुत बड़ा महत्व दिया है । वास्तव में निर्गुण संप्रदाय के अंतर्गत इसकी चर्चा सर्व- प्रथम करने वाले भी डा० बड़थ्वाल ही कहे जा सकते हैं। सं० १९६७ में तिरुपति (मद्रास) में होनेवाले 'प्राच्यविद्या सम्मेलन' के हिंदी विभाग के अध्यक्ष के पद से भाषण करते समय, उन्होंने ग्रंथ का पहले पहल
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