पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/५२३

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परिशिष्ट २ शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुए थे। उनके अनुयायी अधिकतर अलवर के मेरो लोग थे। उनके ऊपर कबीर का पूर्ण प्रभाव है और उन्होंने राम नाम की अपेक्ता का उपदेश दिया है। ( डा० 'के' 'कबीर ऐंड हिज फालोवर्स', पृ०१३.)। ५. गरीबदास-गरीबदासी पंथ के प्रवर्तक कहे जाते हैं जो पंजाब के रोहतक जिले में पाया जाता है। वे भी कबीर के कट्टर अनुयायी थे। उनके समान उन्हें किसी ने भी देवत्व व आदर्शत्व नहीं प्रदान किया है। उनका दावा है कि मुझे स्वयं कबीर ने ही दीक्षित किया था। प्रसिद्ध है कि उन्होंने बहुत अधिक बानियाँ लिखी थीं जिनमें से केवल कुछ ही चुनकर 'वेलवेडियर प्रेस' द्वारा प्रकाशित हुई हैं और उनका प्रयोग इस ग्रंथ में जहाँ-तहाँ किया जा चुका है। उनके 'गुरुग्रंथ साहिब' में चौबीस सहस्त्र पद्य संगृहोत समझ जाते हैं जिनमें से एक सहस कबीर के ही हैं। उनकी साखियाँ 'कबीर मन्शूर' के अंतर्गत कबीर को जीवनी के संबंध में उद्धृत की गई हैं । (दे० ग• 'के' कबीर आदि पृ० १६५)। ६. रामचरन-शाहपुरा ( राजपूताना) के निवासी थे और राम- सनेही संप्रदाय के प्रवर्तक थे जिनका आविर्भाव १८ ची ईस्वी शताब्दी में हुआ था। उनकी विस्तृत रचनाएं हैं जो मुझे अभी हाल में मिली हैं। उन्होंने कबीर के सिद्धान्तों को दुहराया है और उन्हें बड़ी श्रद्धा के साथ देखा है। उनके अनुयायियों और विशेष कर दूल्हाराम ने भी बहुत बानियाँ लिखी हैं। (दे० डा० 'के' 'कबीर पृ० १६५ ।। ७. पानपदास-पानपदासी संप्रदाय के प्रवर्तक थे और बिजनौर जिले के नगीना धामपुर के निवासी थे। उनकी और कबीर की बानियाँ पंथवालों-द्वारा मान्य समझी जाती हैं और ये लोग मेरठ, देहली सर- धना आदि स्थानों में पाये जाते हैं। उनका ठीक-ठीक समय विदित नहीं, किंतु ५८ वीं ईस्वी शताब्दी में हुए होंगे (दे० कबीर मन्शुर भा० १, पृ० ५३७ )। पृ० ३७८ । उनमनि ( उन्मन ) एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ ..