हिन्दी काव्य मैं निर्गुण संप्रदाय पुस्तक 'निर्यानयानी' है. जिसे सर्वसाधारण को आँखों से सुरक्षित रखा जाता है और जो इसीलिए प्रकाशित नहीं है। पंथ के सिद्धांत एक गद्य पुस्तक में दिये गये हैं जिसे 'प्रादि उपदेश' कहा जाता है और जिसमें एक ईश्वर के प्रति भक्ति, नम्रता सतोष, स्वच्छता मादक वस्तु निषेध, एक पत्नीव्रत, अहिंसा और सादे श्वेत वस्त्रों के व्यवहार का उपदेश है। किंतु इन उपदेशों के होते हुए भी, साध लोग वस्त्रों को छापने में निपुण होते हैं । साध दर्शन पर इस्लाम का प्रभाव स्पष्ट है । कबीर को ये लोग एक प्रकार का धर्मदून वा ईश्वरीय दूत मानते हैं ।* गोरखनाथ के साथ निर्गणियों के प्रत्यक्ष सम्बन्ध का प्रमाण इस बात में मिलता है कि साधों द्वारा वे एक महान् पुरुष माने जाते हैं । 'सत्त अवगत्त, गोरख. उदय कबीर' जैसे शब्द व वाक्यांश इनकी फर्रुखा- बाद की 'चौकी' (मठ) के ऊपर खुद हुए हैं । ये शिव को भी महत्ता देते हैं जो यज्ञ में भाग नहीं लिया करते ।x वीरभान को डॉ. विल्सन डा. 'के' श्रादि, ईसाई धर्म-द्वारा प्रभावित बतलाते हैं। किंतु इस बात के दूर से संभव होने के अतिरिक्त कोई प्रत्यक्ष प्रमाण इस कथन की पुष्टि में नहीं है । एक पत्नीना मात्र ही ईसाइयत के प्रभाव का प्रमाण नहीं है । हिंदुओं के सामने यह श्रादर्श कम से कम 'वाल्मीकीय रामायण', के समय से चला पाता है। साधों की अन्य धारणा निर्गुण संप्रदाय के साधारण सिद्धान्तों के अनुकूल ही जान पड़ती हैं। (दे० ट्रस्ट "श्रार० ए० एल० ट्रांजैक्शंस" भा० १, पृ० २५, एच० विल्सन "सेक्ट्स" पृ. ३५२, डा. के; कबीर ऐंड हिला फालोवर्स पृ० १६४ और यू. देव 'सरस्वती' भा० ३७ पृ. ३१ )। ४. लालदास - लाजदाली पंथ के प्रवर्तक थे जो १७ वीं ईस्वी - 'हुआ' होते हुकमी दास कबीर । पैदायस ऊपर किया वजीर ॥ उस घर का उजीर कबीर । अवगत का सिप दास कबीर ॥ x--सत की भगति महादेव पाई । जग्य जाड, न भीखा खाई ।।
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