परिशिष्ट रह गये थे जबतकं गाजीपुर जिले के भुरकुड़ा के निवासी बाबा रामबरन- दास ने महात्मानों की वाणी का प्रकाशन नहीं किया। इस प्रकाशन- द्वारा उन महात्माओं के वस्तुतः रुचिकर जीवन पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। वे लोग ऊची. प्राध्यात्मिक श्रेणी के संत जान पड़ते हैं। इनके कुछ 'पदों को परिशिष्ट ३ में उद्धृत किया गया है । . बाबरी को दहनो का निवासी भी कहा गया है और उनका समय अकबर ( सन् १५५६- १६०५ ई० के पहले श्राता है। भीखा जिनके पदों से उद्धरण लिया गया और जिनकी चर्चा भी इस पुस्तक में की गई है, वे भी प्राध्यात्मिक दृष्टि से इन बावरी के ही वंशज थे और गुजाल के प्रत्यक्ष शिप्य थे। गोविन्द, भीखा के शिष्य थे न कि गुरू जैसा कि पहले कहा गया था। बावरी की परंपरा की वंशावली निम्नलिखित रूप में मानी जाती १. रामानंद. २. दयानद ( ये दोनों गाजीपुर जिले के पटना स्थान के निवासी थे ) ३. मायानन्द (दहनी निवासी ) ४. बाबरी ५. बोरू ६. यारी ७. बुल्लो ८. गुलाल ६. गोविन्द और ११. पलटू । जगजीवन भी जो दूलन के गुरु थे इसी परम्परा की एक शाखा के थे और बुल्ला के शिष्य थे, अजबदास व शाह काकोर भी इसो परम्परा के थे । इनकी कुछ रचना 'महात्माओं की बाणो' में दी गई हैं। इनके विषय में और कुछ भी पता नहीं चलता । -- भीखा १०. ३. वोरभान-~-वीरभान ( जिनका आविर्भाव-काल रेवरंड के० के अनुसार सन् १५४३ ई० और विल्सन के अनुसार सन् १६५२ ई. है) साधों था और साधकों के संप्रदाय के प्रवर्तक है जो गंगा च यमुन्म के ऊपरी द्वाबे तथा मिरजापुर आदि स्थानों में पाये जाते हैं और ये नारनौल के निकट अवस्थित ब्रजसार के निवासी कहे जाते हैं। वे ऊदाकादास के शिष्य भी कहे गये हैं जो कहीं-कहीं गोरखनाथ के शिष्य माने गये हैं, किंतु जिन्हें डा० के रदास का शिष्य ठहराते हैं । 'ऊदाका- दास' को 'मालिक का हुकुम' भी कहते हैं। इस पंथ की प्रधान
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