पंचम अध्याय ३०६ 'दाय में मिलता है जो इससे अत्यंत निकट था और इसकी केवल कुछ ही बातों के लिए हमें इस्लामी तथा सूफी स्रोतों की ओर ध्यान देना पड़ता है। निर्गुण मत में वैष्णव संप्रदाय की ही भाँति उन वाममार्गी शाक्त- तांत्रिकों के भाव भी लक्षित होते हैं जो मद्य, मांस एवं स्त्री आदि का उपभोग करने को अंतिम सिद्धि का साधन माना करते हैं। कबीर ने शाक्त को एक सोया हुआ कुत्ता कहा है, उनका कहना है कि "कुत्तों के सामने स्मृतियों का पाठ करने क्या लाभ और एक शाक्त के सामने हरि का गुणगान करने से क्या लाभ ? शाक्त और कुत्ता दोनों भाई भाई हैं, एक सोया रहता है और दूसरा भू का करता है । शाक्त को मर जाने दो और उस संत को ही जीवित रहने दो जो प्याले भर भर कर रामरसायन का पान किया करता है *" कबीर के अनुसार शाक्त से एक सुअर भी अच्छा होता है, 'शाक्त सुअर भला है, क्योंकि वह कम से कम गाँव को स्वच्छ तो रखा करता है, किंतु शाक्त अपने दुष्कर्मों से लदी हुई नाव पर बैठकर स्वयं डूब मरता है।" वैष्णवों के प्रति प्रदर्शित उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा शाक्तों के प्रति -- साषित सुनहा दूनों भाई । वो नीर्दै वो भौंकत जाई ।।३२१।। क० ग्रं०, पृ० १६३ । का सुनहा को सुमृत सुनाये । का साकत आगे हरिगुण गाये। साकत मरै संत जन जीवे । भरि भरि राम रसायन पीवै ॥४३॥ पृ० १०२। साकत ते सूकर भला, सूचा राखे गाँव । बूड़ा साषत बापुड़ा वैसि सभरणी नाव ॥१५॥ वही, पृ० ३६ । वहीं, ।
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