अपने ग्रंथानुशीलन के फल स्वरूप, उन्होंने कई निबन्ध भी लिख जो समय समय पर हिंदी के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे । उनके बहुत से छोटे-बड़े लेख अभी हस्तलिखित रूप में ही पड़े हैं और कई पुस्तकें जिन्हें वे सम्पादित करना चाहते थे और पाठों के सुधार-क्रमादि को व्यवस्थिति करके प्रकाशित करना चाहते थ, अभी ज्यों की त्यों रखी हुई हैं। उनकी सभी प्रकाशित व अप्रकाशित रचनाओं पर विचार करके देखा जाय तो, विदित होता है कि उनका विशेष ध्यान हिंदी-साहित्य के उस अंश की ओर ही रहा, जो उसके इतिहास में नाथों की सबदियों एवं संतों की बानियों के नाम से प्रसिद्ध है और इन दो के क्षेत्रों में उन्होंने अपना कार्य बड़ी लगन के साथ किया था। इन विषयों पर लिखे गये उनके निबन्धों का एक संग्रह बा० सम्पूर्णा- नन्द जी द्वारा सम्पादित होकर 'ज्ञान मण्डल कार्यालय काशी' से, 'योग प्रवाह' के नाम से, सं० २००३ में निकल चुका है और शेष में से कुछ और भी यथाशीघ्र उनके प्रिय शिष्य लखनऊ विश्व-विद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक डॉ० भगीरथ मिश्र के द्वारा संपादित होकर प्रकाशित होने जा रहे हैं । उनके अन्य विषयों से सम्बन्ध रखनेवाले लेखों में से कुछ तुलसी- दास, केशवदास, भूषण, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महावीरप्रसाद द्विवेदी, रामचन्द्र शुक्ल, श्यामसुन्दरदास आदि पर लिखे गये हैं, कुछ में हिंदी- भाषा-सम्बन्धी कई प्रश्नों पर व्यक्त किये गये उनके विचार दीख पड़ते हैं और शेष का सम्बन्ध अधिकतर भिन्न-भिन्न ऐतिहासिक विषयों के साथ जान पड़ता है। उनकी प्रकाशित हिंदी पुस्तकों में, प्राकृतिक चिकित्सा विषयक दो रचनाओं के अतिरिक्त, रूपक रहस्य' 'गोस्वामी तुलसीदास' 'गोरखबानी' 'रामचंद्रिका' आदि के नाम लिये जा सकते हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध प्रकाशित कृति 'दि निर्गुण स्कूल आफ हिंदी गोइट्री' है जो उनकी थीसिस के रूप पहले अंग्रेजी भाषा में लिखी गई थी। डा० बड़थ्वाल जो कुछ भी लिखते थे उसे गम्भीरतापूर्वक और
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