7 हिन्दी काव्य में निर्गुण सप्रदाय है। उसकी मौज के प्रति विश्वास रखो तो तुम्हें जान पड़ेगा कि इसके लिए किसी प्रयत्न वा युक्ति की आवश्यकता नहीं है। इसके सिवाय उन के शिष्यों का दावा है कि वे राधास्वामी नाम ही जिसे शिवदयाल ने निरपेक्ष का एक नाम ठहराया था उस श्वास क्रिया का प्रतिनिधित्व करता है। 'राधा' श्वास को बाहर निकलने वालो धारा हैं और स्वामी भोतर प्रानेवाली है और इस प्रकार श्वास ही नामस्मरण की साधना की अज्ञात क्रिया है। इसी प्रकार का दावा दूसरे लोग रामशब्दके 'रा' व 'म' नामक दो अक्षरों के लिए भी कर सकते हैं और राम को साधना करने वाले, वस्तुतः ऐसा इस समय किया भी करते हैं । राधास्वामी सत्संग वाले मानसिक शांति के लिए हठयोग प्राणायाम की भी उपयोगिता स्वीकार फिर भी यह निर्विवाद है कि निगुणो क्या अतिशयतावादी तक भो अपने शब्दयोग के लिए योगियों के ऋणी हैं । निगुण साहित्य के एक सरसरी तौर पर किये अध्ययन के आधार पर ऐसा विश्वास कर लेना ( जैसा कि कुछ लोग किया भी करते हैं ) कि निर्गुणी लोग योग की नितांत उपेक्षा करते हैं, व्यर्थ है । प्रत्यक्ष है कि वे हठयोग को पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं करते थे किंतु वे उससे सहायता अवश्य लेते थे उपनिषद- कालीन ऋषियों को भाँति उन्हें प्रासन से नहीं बल्कि उपासन (संपर्क) से प्रयोजन था और वे केवल उन्हीं यौगिक साधनाओं को अपनाते थे जिनसे, उनके अनुसार, मन को विषयों से पूर्णतः हटा लेने में सहायता मिलती है। और मुख्यत: वहो योग का क्षेत्र भी है। योग के सबसे बड़े प्रमाण पतंजलि भी इसी बात में सहमत हैं क्योंकि उनका भी यही कहना है कि योग से अभिप्राय चित्त की वृत्तियों का निरोध कर लेना ॐ वही प.०६२२॥
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