१४८ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय जाग्रत करने वाला होता है, जिन्होंने स्मृति की चिनगारी को अदिन- शिखा के रूप में प्रज्वलित कर रक्खा है तथा जिन्होंने अपने कारागार स्वरूपी संसार की दीवारों को उसके द्वारा जला डाला है। ये साधु लोग हैं । साधुओं के साथ संपर्क होने से एक ऐसे वातावरण की उप- लब्धि होती है जो आध्यात्मिकता से ओतप्रोत है और इस कारण आध्या: त्मिक विकास के लिए नितांत उपयुक्त है । साधु वस्तुत: ऐसे केन्द्र होते हैं जहाँ से आध्यात्मिकता का स्फुरण हुअा करता है और निर्गुणी लोग इसी कारण उनके विषय में और उनके संग के सम्बन्ध में प्रशंसा को बातें करते हैं । केवल निर्गुणियों की ही बात नहीं, प्रत्येक देश व काल में साधुओं को लोग आध्यात्मिक प्रभाव फैलानेवाले समझते आये हैं। शेख जियाउद्दीन अबू नजीववास के विषय में प्रसिद्ध है कि खिफत मीना की मसजिद में तवाफ़ करते समय वे सब उपस्थित लोगों के ऊपर दृष्टिपात करते और उनकी दशा की जाँच करने तथा उसपर विचार करने में हद कर देते थे | उन लोगों के पूछने पर कि आप क्या कुछ हूँढ रहे हैं वे उत्तर दे दिया करते कि खुदा के बंदों पर नजर डालने से खुशी हासिल होती है, मैं उनकी निगाहों की तलाश में हूँ।> 3 साधू के साथ सत्संग करने में बहुत बड़ी आध्यात्मिक शक्ति समझो जाती है। जिस प्रकार चंदन का वृक्ष अपने निकटवर्ती वृक्षों को भी सुगंधि व शीतलता प्रदान करता है अथवा भृगी नाम का कीड़ा, जिस प्रकार, गाकर दूसरे कोड़ों को भी अपना रूप दे देता है उसी प्रकार साधू भी अपने निकट आने वालों को अपना स्वरूप दे देते हैं। कबीर ने कहा है-“साधु के दर्शन से भगवान् का स्मरण हो पाता है, अतएव केवन वे ही क्षण अपने जीवन-काल के अन्तर्गत गिनने योग्य हैं, दूसरे > दि अवारिफ़ल मारिफ़, पृ० २७ ।
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