१७२ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय अवतारवाद के इस मूल सौंदर्य के सामने उसका खंडन करनेवाले ये निर्गुणी संत भी दृढ़ता के साथ खड़े नहीं रह पाये हैं । भक्तों को सूक्ष्म सामीप्य-सुख के लाभ को आशा देनेवाले सुकृतियों' पर दया की वर्षा करनेवाले और पापी अत्याचारियों पर नाश का बज्र-निक्षेप करनेवाले अवतार उनको अत्यंत मनोमोहक जान पड़े। वस्तुतः स्वयं कबीर और अन्य कई संत इसी कारण अवतारों से बहुत आकृष्ट हुए हैं। दुर्योधन के राजप्रासाद के राजसी व्यंजनों और विलास की सामग्रियों को छोड़कर विदुर की झोपड़ी में मिलनेवाले रूखे-सूखे भोजन में सुख मानना कबीर को विशेष रूप से आकर्षक जान पड़ा। उन्होंने नर- सिंहावतार का भी खूब यशोगान किया है, जिसने बालक भक्त प्रह्लाद को अपने अत्याचारी पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से बचाया ।+ दादू ने गोपियों के साथ नाना प्रकार से क्रीड़ा करनेवाले कृष्ण की स्तुति की है। चरनदासियों के लिए कृष्ण समस्त सृष्टि का मूल कारण है। सतनामी सम्प्रदाय के पुनरुद्धार कर्ता जगजीवनदास के अनुयायी वाराह और बावन अवतारों की भक्ति करते बताये गये हैं, यद्यपि उनके ॐ राजन कौन तुमारे आवै । ऐसो भाव बिदुर को देख्यो, वहु गरीब मोहि भादै... (दुर्योधन ) हस्ती देखि भरम ते भूला हरि भगवान न जागा । -कं० ग्र०', पृ० ३१८, १७६ । + महापुरुष देवाधिदेव नरसिंह प्रगट कियो भगति भव । कहै कबीर कोइ लहै न पार । प्रहलाद उबारयो अनेक बार ।। -वही, पृ० २१४ । ४ मुख बोलि स्वामी अंतरजामी, तेरा सबद सुहावै रामजी। धेनु चरावन बेनु बजावन, दर्स दिखावन कामिनी । विरह उपावन, तपत बुझावन, अंगि लगावन भामिनी ।।
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