। अपने अपने मूल धर्मों की ओर से शांतिपूर्वक संतुष्ट जान पड़ते हैं, यद्यपि इनका स्पष्ट उद्देश्य भी है कि संसार को विभिन्न मतों के रहते हुए भी एक व्यापक भ्रातृभाव के साथ रहना चाहिए । निरंजनी लोग सारे हिंदू देवगणों के प्रति प्रदर्शित किय जानेवाले सम्मान को उदार भाव के साथ देखते हैं, यद्यपि उनकी धारणा है कि ये विभिन्न देवता और अवतार निरंजन ब्रह्म के साधारण अवभास मात्र हैं। वे इनकी पूजादि की आवश्यकता से अपने को ऊपर उठा हुआ बतलाते हैं और परंपरागत सामाजिक अनुशासन के प्रति अपना विरोध प्रदर्शित करना नहीं चाहते । सूफ़ी लोग भी भिन्न-भिन्न नबियों व रसूल आदि के लिए पूरा सम्मान प्रदर्शित करते हैं और सारी इस्लामी बातों से प्रेम करते हैं यद्यपि उन्होंने कुछ न कुछ रामानुजीय ढंग के अन-इस्लामी वेदांत को भी अपना लिया है। सूफी लोगों की दार्शनिक प्रवृत्ति उन्हें निर्गुण संप्रदाय के विशिष्टा- द्वैती शिवदयाल आदि के साथ सम्मिलित करती है, जहाँ निरंजनी लोग इस विषय में कबीर जैसे जान पड़ते हैं । निरंजनी संप्रदाय नाथ संप्रदाय का एक विकसित रूप है जिसमें योग पूर्णतः वेदांती प्रभाव में आ चुका है । यह एक प्रकार से नाथ संप्रदाय एवं निर्गुण संप्रदाय का मध्यवर्ती है। और कबीर, कमाल एवं दादू जैसे कतिपय पूर्ववर्ती निर्गुणी संतों के साथ इसकी बहुत कम असमानता है, जिस कारण इन्हें हम रामानंद की श्रेणी में गिन सकते हैं। असमानता तब अधिक स्पष्ट हो जाती है जब कबी- रादि के धर्मदासी तथा राधास्वामी जैसे अनुयायी निरंजन की, मृत्यु के अधिष्ठाता वा कालपुरुष के रूप में चर्चा करने लगते हैं। निरंजनी लोगों की रचनाएँ था तो विस्तृत निबंधों अथवा लघुकाव्यों के रूप में पायी जाती हैं जो अभी तक अप्रकाशित हैं जहाँ सूफियों की अधिकतर प्रेम- गाथाएँ ही मिलती हैं जिनमें कहीं कहीं अन्योक्तियाँ भी पायी जाती हैं। मेरे विचार में मेरा यह प्रयास अपने ढंग का सबसे पहला है ।
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