-8 कहें पलटू हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय गंग जलालपुर जन्म भयो है, वसे अवध के खोर । प्रसाद हो, भयो जक्त में •सोर ॥ चारि चरन कों मे टिके, भक्ति चलाई मूल । गुरु गोविंद के बाग में, पलटू फूले फूल ।। सहर जलालपुर मूड मुड़ाया, अवध तुड़ाकर धनियाँ । सहज करें व्यापार घट में पलटू निरगुन बनियाँ ।। भजनावली इनके भाई पलटूप्रसाद की बनाई कही जाती है, लेकिन पलटूप्रसाद खुद इन्हीं का नाम भी हो सकता है। इनका अखाड़ा अयोध्या से चार-पाँच मील की दूरी पर है । मूर्ति- पूजा और जाँति-पाँति के तीव्र खंडन से अयोध्या के वैरागी इनसे बहुत चिढ़ गये थे। इसीलिए उन्होंने इन्हें जाति से वाहर कर दिया था। किंतु पलटू ने इसकी कोई परवा न की बैरागी सब बटुरके पलटु हिं कियो अजातः ।... लोक-लाज कुल छाँड़ि के, कर लीजे अपना काम । जगत हँसे तो हँसन दे, पलटू हँसै न राम ॥ इन्होंने रामकुंडलिया और आत्मकम ये दो ग्रंथ लिखे हैं । इनको सब रचनाएँ तीन भागों में बेल्वेडियर प्रेस से छप चुकी हैं। इनके अरिल्ल और कुंडलिया बहुत सुंदर बने हैं । ये अवध के नवाब शुजा- उद्दौला के समकालीन थे और सं० १८२७ के आस पास वर्तमान थे। धरनीदास बिहार के रहनेवाले एक कायस्थ मुंशी थे। संसार से इनका जी इतना उचटा हुआ था कि परमात्मा के साक्षात्कार में बाधक समझकर इन्होंने मुंशोगिर छोड़ दी और ये भगवान् १२. धरनीदास के प्रेम में तन्मय होकर निःस्वार्थ जीवन व्यतीत करने लगे। यह तन्मयता इनके नथ प्रेमप्रकाश और सत्यप्रकाश से स्पष्ट परिलक्षित होती हैं। देश के विभिन्न भागों में और खासकर बिहार में अभी सहस्रों धरनीदासी हैं। इनके संप्रदाय का ।
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