दूसरा अध्याय वे सब नादिरुन्निकात संगृहीत हैं। इन्होंने सूफियों की कविताओं का भी अध्ययन किया था । मौलाना रूम के वचनों को इन्होंने स्थान- स्थान पर अपने मत की पुष्टि में उद्धृत किया है । सरहिंद के पास देहन- पुर में बाबालाल ने मठ और मन्दिर बनवाये थे, जो अब तक विद्यमान हैं । इनके अनुयायी बाबालाली कहलाते हैं । बाबा मलूकदास सच्ची लगन के उन थोड़े से संतों में से थे जिन्होंने सत्य की खोज के लिए अपने ही हृदय को क्षेत्र माना किंतु जिनके सिद्धान्त किसी सीमा की परवा न कर नेपाल, जगन्नाथ, काबुल आदि दूर-दूर देशों में फैल गये वह भी उस जमाने में जब दूर-दूर की यात्रा इतनी आसान न थी, जितनी आज है। ७. मलूकदास उपर्युक्त स्थानों के अतिरिक्त उनकी गद्दियाँ कहा, जयपुर, गुजरात, मुलतान और पटने में हैं। उनके भानजे और शिष्य सथुरादास पद्य में परिचयी नाम की उनकी एक जीवनी लिखी है, जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है- मलूक को भगिनी-सुत जोई । मलूक को पुनि शिष्य है सोई ।। । सथुरा नाम प्रगट जग होई ।। तिन हित-सहित परिचयी भाषी । बसै प्रयाग जगत सब साषी॥ इसके अनुसार बाबा मलूकदास के पिता का नाम सुन्दरदास था, पितामह का जठरमल और प्रपितामह का बेणीराम । इनके हरिश्चन्द्रदास, शृङ्गगरचन्द्र, रायचन्द्र ये तीन भाई और थे। मलूकदास का प्यार का नाम मल्लू था । ये जाति के कक्कड़ थे । इनका जन्म वैशाख कृष्ण ५ सं० १६३१ में कड़ा में हुआ था और १०८ वर्ष की दिव्य और निष्कलंक श्रायु भीगकर वैशाख कृष्ण चतुर्दशी सवत् १७३६ में वहीं वे स्वर्गवासी भी हुए । मिस्टर ग्राउज़ ने अपनी मथुरा में इन्हें जहाँगीर
- विल्सन--"रिलिजस सेक्ट्स प्राव दि हिंदूज', पृ० ३४७-४८ ।