दूसरा अध्याय खरीदने के और काजी घोड़े के बच्चे की रक्षा करने के खयाल को दूर न कर सकें । वे दया, न्याय और समता का प्रसार देखना चाहते थे । अन्याय की खीर-खाँड़ में उन्हें खून की और मेहनत की रूखी-सूखी रोटी में दूध की धार दिखलाई देनी थी । साहूकार के घर ब्रह्मभोज का निमन्त्रण अस्वीकार कर उन्होंने लालू बढ़ई की ज्वार की रोटी बड़े प्रेम से खाई थी। सं० १५८३ ( १५२६ ई० ) में बाबर ने सय्यदपुर को तहस-नहस करके एक घोर हत्याकाण्ड उपस्थित कर दिया था, जिसे नानक ने खुद अपनी आँखों से देखा था। नानक भी उस समय बन्दी बनाये गये थे। उस समय बाबर को उन्होंने न्यायो होने, विजित के साथ दया दिखलाने और सच्चे भाव से परमात्मा की भक्ति करने का उपदेश दिया था। शासकों के अत्याचार की उन्होंने घोर निन्दा की। उन्हें वे बूचड़ कहते थे । उनका अत्याचार देखकर शान्ति के उपासक नानक ने भी 'खून के सोहिले' गाये और भविष्यवाणी की कि चाहे काया रूपी वस्त्र . टुकड़े-टुकड़े हो जायँ फिर भी समय आयगा जब और मर्दो के बच्चे पैदा होंगे और हिन्दुस्तान अपना बोल सँभालेगा। नानक का गुरु कोन था, इसका ठीक-ठीक पता नहीं चलता। संतबानी-संपादक के अनुसार नारद मुनि उनके गुरु थे। कबीर मंसूर में भाई बाला की जनमसाखी से कुछ अवतरण दिये हैं जिनमें नानक के गुरु का नाम "जिंदा बाबा" लिखा है। जिंदा का अर्थ मुक्त पुरुष होता है । परमार्थतः केवल परमात्मा ही जिंदा बाबा है । कबीर-ग्रंथा- वली में यह शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त हुअा है- "कहै कबीर हमारे ॐ काया कपड़ टुक-टुक होसी हिंदुस्तान संभालसि वोला । आनि अठतरै जानि सतानवै, होरि भी उठसि मरद का चेला। सच की बाणी नानक पाखै, सचु सुरणाइसि सच की बेला ॥ --'ग्रन्थ', पृ० ३८६ ।
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