हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय किंतु बहुन छोटे नहीं। इस दृष्टि से भी १४२७ के पास-पास उनका जन्म मानना उचित है। मृत्यु के निकट कबीर बहुत प्रसिद्ध रहे होंगे । इसलिए उनको जन्म- तिथि का लोगों का ज्ञान रहा हो, चाहे न रहा हो, उनकी पुण्यतिथि का ज्ञान अवश्य रहा होगा। उनकी निधन-तिथि के बारे में दो दोहे प्रचलित हैं, जो प्रायः एक ही के रूपांतर मालूम होते हैं। एक के अनुसार उनकी मृत्यु सं० १५०५ और दूसरे के अनुसार १५७५ में हुई । इनमें से एक अवश्य सही होना चाहिए। पहला अधिक संगत माजूम पड़ता है । उसके अनुसार उनकी आयु लगभग ८० वर्ष की होती है । अनुमान यह होता है कि सिकंदर लोदी ( राज्य सं० १५४६ से १५७२) के साथ कबीर का नाम जोड़ने के उद्देश्य से ही किसी ने 'श्री पांच मो' की जगह 'पछत्तरा' कर दिया है । कबीर पर किसी शासक की कोप-दृष्टि अवश्य हुई थी, पर वह शासक सिकंदर ही था, इसका कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता । प्रियादास जी ने सिकंदर ही को अधिक जुल्मी सुना होगा, इसी से उसके द्वारा कबीर पर जुल्म होना लिख दिया होगा। कबीर के जीवन की घटनाओं में शेख तक़ी का नाम भी लिया जाता है। रेवरेंड वेस्क्ट ने इस नाम के दो व्यक्तियों का उल्लेख किया है, एक मानिकपुर कड़ा के और दूसरे झूसी के । मानिकपुरवाले शेख तक़ी चिस्तिया खानदान के थे। उनकी मृत्यु सं०१६०२ (ई० १५४५) में हुई । उसीवाले तकी सुहर्वर्दी खानदान के थे और स्वामी रामानंद संवत पंद्रह सौ पौ पाँच मो, मगहर को कियो गँवन । अगहन सुदी एकादसी, मिले पवन मे पवन ॥१॥ संवत पंद्रह सौ पछत्तरा, कियो मगहर को गवन । माघ सुदी एकादसी, रलो पवन में पवन ॥ २॥ -
पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१३८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।