दूसरा अध्याय 8 ? बतलाई जातो हैं । आदि ग्रन्थ में रविदास नाम से इनकी कविताओं का संग्रह किया गया है । ये स्वयं बहुत ऊँचे ज्ञानी भक्त थे जिसे मूर्ति की आवश्यकता नहीं रह जाती परन्तु दूसरों के लिए वे मूर्ति की आवश्यकता समझते हैं। कहा जाता है कि उन्होंने एक मन्दिर बनवाया था, जिसके वे स्वयं पुजारी रहे थे । इनका भी अलग पन्य चला जिसमें अब केवल इन्हीं की जात के लोग हैं जो अपने को बहुधा • चमार न कह कर रैदासी' कहते हैं। परन्तु रामानन्द के सबसे प्रसिद्ध शिष्य कबीरदास थे जिन्होंने भक्ति के मार्ग को और भी प्रशस्त, विस्तृत और उदार बना दिया। उनका जीवन वृत्त स्वतन्त्र रूप से आगे दिया जायगा । सुरसुरानन्द ब्राह्मण थे। उनके विषय में विशेष कुछ नहीं मालूम है । इतना अवश्य प्रकट होता है कि वे बहुत सच्चे सुधारक रहे होंगे। खान-पान के सम्बन्ध में शायद उन्होंने रामानन्द जी से अधिक सुधार की मात्रा दिखाई हो । भक्तमाल में लिखा है कि इनके मुंह में म्लेच्छ की दी हुई रोटी भी नुलसीदल हो जाती थी। अगस्त्य-संहिता के अनुसार रामानन्द का जन्म संवत् १३५६ (१२६६ ई०) में और मृत्यु सं० १४६७ (१४१० ई० ) में हुई। भिन्न-भिन्न दृष्टियों से विचार करने से भी यह समय गलत नहीं ७. रामानन्द मालूम होता। वे रामानुज की शिष्य-परंपरा की का समय चौथी पीड़ी में हुए हैं। रामानुज की कर्मण्यता का क्षेत्र तीन राजाओं का समय रहा है जिनका शासन- काल सं० ११२७ (१०७० ई.) से १२०३ ( ११४६ ई.) तक ठहरता । अस्तु, यदि हम उनकी मृत्यु सं० १२१८ (प्रायः ११६० ई०) में भी माने और एक-एक पीढ़ी के लिए तीस-तीस वर्ष भी दें तो भी रामानंद का जन्म सं० १२६६ में इतना पहले नहीं पा जाता है कि इस दृष्टि से अनुचित माजूम हो। ओड़छे के हरिराम 'व्यास'
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