हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय परिवार में हुआ था। महाराष्ट्री परंपरा के अनुसार उसका पिता दामा शंट दरजी था। आदि ग्रंथ में नामदेव की जो ३. नामदेव कवितायें सुरक्षित हैं उनमें वे अपने को छीपी कहते हैं । सम्भव है, कि उनके परिवार में दोनों पेशे चलते हों। मराठी में उनके एक अभंग से पता चलता है कि उनका जन्म संवत् ५३२७ (सन् १२७०) में हुआ था । लोग उनके मराठी अभंगों की नवोनता की दृष्टि से उनका प्राविर्भावकाल लगभग सौ वर्ष बाद मानते हैं, परंतु आधुनिक भाषाएँ इतनी नवीन नहीं हैं जितनी बहुधा समझी जाती हैं। ज्ञानदेव नामदेव के समकालीन थे, परंतु उनकी भाषा को प्राचीनता का यह कारण नहीं है कि उस समय तक अाधु- निक मराठी का आविर्भाव नहीं हुआ था, बल्कि यह, कि विद्वान् होने के कारण परंपरागत साहित्यिक भाषा पर उनका अधिकार था जिसे लिखने में, अपढ़ होने के कारण, नामदेव असमर्थ थे। स्वयं ज्ञानदेव ने सीधी-सादी मराठी में अभंगों की रचना की थी। प्रो. रानडे का मत है कि ज्ञानदेव के अभंगों को सादगी तथा कारक-चिह्नों की विभिन्नता का कारण छै शताब्दियों से उनका स्मृति से रक्षित होते अाना है। समझ में नहीं आता कि जिस ज्ञानदेव के गोता-भाष्य और अमृता- नुभव लेखबद्ध हो गये थे, उसके अभंग ही क्यों लेखबद्ध नहीं हुए ? जो हो, प्रो. रानडे भी इस बात से सहमत हैं कि उनका जन्म सं० ५३२७ में हुआ था और मृत्यु सं० १४०७ (सन् १३५०) में। कहा जाता है कि जवानी में नामदेव डाकू बन बैठा था और लूटमार कर आजीविका चलाता था। एक दिन उसके दल ने ८४ आदमियों के समूह को मार डाला। शहर में लौटकर आने पर उसने एक स्त्री को अत्यन्त करुण केंदन करते हुए पाया। पूछने पर मालूम हुआ कि उसके पति को डाकुओं ने मार डाला है। उसे अपने कृत्य पर उत्कट धृया हो आई और वह घोर पश्चात्ताप करने लगा। विशोवा खेचर को
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