पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/११५

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दूसरा अध्याय ३३ जयदेव और नामदेव के संबंध में कबीर की यह भावना मालूम पड़ती थी कि वे भन तो अच्छे थे पर अभी हानी की श्रेणी में नहीं पहुँच पाये थे- सनक सनंदन जैदेव नामा, भगति करी मन उनहुँ न जाना ! अतएव निर्गुण संप्रदाय के प्रसारकों का परिचय देने के पहले इन लोगों का भी परिचय दे देना आवश्यक जान पड़ता है। इन सबमें समय की दृष्टि से जयदेव सबसे प्राचीन जान पड़ते हैं; क्योंकि गीतगोविंद-कार को छोड़कर और दूसरा कोई संत ऐसा नहीं जान पड़ता है जिसके संबंध में कबीर के जयदेव- २. जयदेव संबंधी उल्लेख ठीक बैठ सकें । ये राजा लक्ष्मणसेन की सभा के पंच-रत्नों में से एक थे, जिनका राजत्व- काल सन् १९७० से प्रारम्भ होता है। कहा जाता है कि जयदेव पहले रमते साधु थे; माया-ममता के भय से किसी पेड़ के तले भी एक दिन से अधिक वास न करते थे। किंतु, पीछे भगवान् की प्रेरणा से पद्मावती नाम की एक ब्राह्मण-कुमारी से इनका विवाह हो गया। इनके जीवन में कई चमत्कारों का उल्लेख किया जाता है जिनके लिए यहाँ पर स्थान नहीं है। इन्होंने रसना-राघव, गीत-गोविंद और चंद्रालोक ये तीन ग्रंथ लिखे । गीतगोविंद की तो सारा संसार मक्त-कंठ से प्रशंसा करता है इसमें भी निर्गुण पंथियों के अनुसार जयदेव ने अन्योक्ति के रूप में ज्ञान कहा है । गोपियाँ पंचंद्रियाँ हैं और राधा दिव्य ज्ञान । गोपियों को छोड़ कर, कृष्ण का राधा से प्रेम करना यही जीव की मुक्ति है। परंतु इस तरह इसका अर्थ बैठाना जयदेव का उद्देश्य था या नहीं, नहीं कहा जा सकता। नामदेव का जन्म सतारा जिले के नरसी बमनी गाँव में एक शैव ॐ क० ग्रं॰, पृ० ६६, ३३ । -