पहला अध्याय मुसलमान सबको शिष्य बनाया । एक ओर तो उनके अनन्तानन्द, भवानन्द श्रादि ब्राह्मण शिष्य थे, जिन्होंने रामभक्ति को लेकर चलनेवाली वैष्णवधारा को कट्टरता की सीमा के अन्दर रखा; तो दूसरी ओर उनके शिष्यों में नीच वर्ण के लोग भी थे जिन्होंने कट्टरता के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई। इनमें धना जाट था, सैन नाई, रैदास चमार और कबीर मुसलमान जुलाहा । भविष्य पुराण से नो पता चलता है कि भक्ति के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि सामाजिक क्षेत्र में भी रामानन्द ने कुछ उदारता का प्रवेश किया था। कहते हैं कि फैजाबाद के सूबेदार ने कुछ हिन्दुओं को जबर्दस्ती मुसलमान बना लिया था। रामानन्दजी ने इन्हें फिर से हिन्दू बना लिया। ये लोग संोगी कहलाते थे और अयोध्या में रहते थे । कहा जाता है कि अब भी ये अयोध्या के आस- पास रहते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार स्वामी रामानन्दजी ने इस अवसर पर ऐसा चमत्कार दिखलाया जिसमें इन लोगों के गले में तुलसी की माला, जिह्वा पर रामनान और माथे पर श्वेत और रक्त-तिलक अपने श्राप प्रकट हो गए। कुछ लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि इन्होंने खान-पान के नियमों को भी कुछ शिथिल कर दिया । कहा जाता है कि मूल श्रीसंप्रदायवालों को स्वामी रामानन्द जी की यह उदार प्रवृति अच्छी न लगी और उन्होंने उनके साथ खाना अस्वीकार कर दिया । इससे रामानन्द को अपना ही संप्रदाय अलग चलाने की आवश्यकता का अनुभव हुआ। जिसे चलाने के लिये उन्हें अपने गुरु राघवानन्द जी ® म्लेच्छास्ते वैष्णवाश्चासन् रामानन्दप्रभावतः । संयोगिनश्च तेज्ञया अयोध्यायां वभूविरे ॥ कण्ठे च तुलसीमाला जिह्वा राममयी कृता । भाले त्रिशूलचिह्नं च श्वेतरक्तं तदाभवत् । -भविष्य पुराण ( वेंकटेश्वर प्रेस, १८६६) अध्याय २१. प० ३६२. प्रपाठक ३..
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