पहला अध्याय २२ मान था । परंतु मुल्ला दाऊद भी आदि प्रेमाख्यानक कवि था या नहीं, नहीं कह सकते ! उसकी नूरक और चंदा की कहानी का हमें नाम ही नाम माजूम है। कुतबन की मृगावती पहली प्रेम-कहानी है जिसके बारे में हम कुछ जानते हैं। यह पुस्तक सिकंदर लोदी के राजत्वकाल में संवत् १५५७ के लगभग लिखी गई थी। जब कि परस्पर-विरोधी संस्कृतियों का समझना सबसे अधिक आवश्यक जान पड़ता था। परंतु मृगावती में इस प्रकार की कहानी लिखने की कला इतनी कुछ विकसित है कि उसे भी हम इस प्रकार की पहली कहानी नहीं मान सकते । कुतबन के बाद मंझन ने मधु-मालती, मलिक मुहम्मद जायसी ने पद्मावत और उसमान ने चित्रावली लिखी। इन प्रेम-कहानियों की धारा बराबर बीसवीं शताब्दी तक बहती चली आई है। ये कहानियाँ एक प्रकार से अन्योक्तियाँ हैं, जिनमें लौकिक प्रेम ईश्वरोन्मुख प्रेम का प्रतीक है । इनको पढ़ने से मालूम होता है, जैसे इनके मुसलमान लेखक हिंदुओं के जीवन-सिद्धांतों का उपदेश कर रहे हों। आदि मुस्लिम-काल की इन कहानियों में भी हिंदू जीवन की बारीक से बारीक बातें बड़े ठिकाने से चित्रित हैं। जिससे पता चलता है कि इनके सूफी लेखक हिंदू समाज तथा हिंदू साधुओं से घनिष्ट मेलजोल रखते थे। इससे यह भी पता चलता है कि उनके हृदय में हिंदुओं के प्रति कितनी सहानुभूति थी। इससे स्वभावतः हिंदुओं में भी उनके प्रति श्रद्धा और आदर का भाव इदित हुअा होगा | हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान् पं० रामचंद्र शुक्ल का अनु भव है कि जिन-जिन परिवारों में पद्मावत की पोथी पाई गई, वे हिंदुओं के अविरोधी, सहिष्णु और उदार पाए गए । इस प्रकार दोनों जातियों के साधुओं के कर्तृत्व से एक ऐसी भूमि का निर्माण हो रहा था जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों प्रेमपूर्वक मिल सकते । में भगवान् की शरण में जाकर हिंदू किस प्रकार हार्दिक शाति मात करने का प्रयत्न कर रहे थे, यह हम देख चुके हैं। शह को आपत्काल
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