हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय भारतीय दर्शन सबका उन्होंने समादर किया और अरब को ले गए । इसो शताब्दी में, अरव में, सूफी मत का उदय हुश्रा । सूफी शब्द का पहला उल्लेख सीरिया के जाहिद अहसन की रचनाओं में मिलता है, जिसकी मृत्यु ई० सन् ७८० में हुई । सन् ७५६ से ८०६ तक बगदाद के अब्बासी सिंहासन पर मंसुर और हारूँ रशीद सदृश उदार खलीका बैठे, जिन्होंने विद्या और संस्कृति को अपने यहाँ उदारता-पूर्ण प्रश्रय दिया। अपने बरामका मंत्रियों की सलाह से उन्हें इस सम्बन्ध में बड़ी सहायता मिलती थी। बरामका जोग पहले बौद्ध थे, पीछे से उन्होंने इस्लाम धर्म को ग्रहण कर लिया। उनका भारतीय संस्कृति से आकृष्ट होना स्वाभा- विक ही था । सन् ७६० से ८१० तक याहिया बरामकी मन्त्री रहा । उसने एक योग्य व्यक्ति को भारतीय धर्मों और भारतीय चिकित्साशास्त्र का अध्ययन और अन्वेषण करने के लिये भारत भेजा। इस व्यक्ति ने अध्ययन और अन्वेषण से जो कुछ पता लगाया, उसका लंबा-चौड़ा विवरण लिखा । यद्यपि यह विवरण अब लभ्य नहीं है, तो भी उसका संक्षेप इब्न नदीम की किताबुल फेहरिस्त में सुरक्षित है । इब्न नदीम ने विवरण के लिखे जाने के ७०-८० वर्ष बाद अपना संक्षेप तैयार किया था। इस संक्षेप से पता चलता है कि इस विवरण के लेखक ने हिंदू धर्म के सिद्धांतों के दार्शनिक मूल तत्त्व को अच्छी तरह से समझ लिया था। अरबों को हिंदू-धर्म का साधारण ज्ञान तो पहले ही से रहा होगा, अन्यथा वे उसके प्रगाढ़ परिचय के लिये लालायित न होते। कहना न होगा कि भारत में धर्म और दर्शन का अन्योन्याश्रय-संबन्ध है। सूफी धर्म पर शंकर के कट्टर अद्वैत वेदांत का असर नहीं दिखाई ॐ अवारिफल मारिफ़ (अंगरेजी अनवाद), पृ०१। x नदवी-अरब और भारत के सम्बन्ध, पृ० ६४ । = नदवी-परब और भारत के संबंध, पृ० १६७ ।
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