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धोबी का कुत्ता, घर का न घाट का आत्मपक्षं परित्यज्य परपक्षेषु यो रतः स परहन्यते मूढो ...... अपने पक्ष को छोड़कर जो दूसरे दल का हित सोचे उसे दूसरे दल के लोग भी मार देते है। . . ० एक दिन क—र नाम का गीदड़ गांव की ओर निकल पड़ा। रात का समय था और तिसपर अमावस्या का अन्ध- कार । कुछ दिखाई नही पड़ रहा था। चलते-चलते वह किसी धोवी के नील भरे वर्तन में गिर पड़ा । उसने वार-बार प्रयत्न किया, पर वह उससे निकल ही नहीं पाया । रात बीतती जा रही थी । गीदड़ को लगता जैसे उसकी मुसीवत पास आ रही हो । धोवी आयेगा और पीटेगा । यह विचार उसका खून सुखा रहा था । उससे जो कुछ बन पड़ा उसने किया । पर फिर भी निकल न सका। धीरे-धीरे तारे ऊपा की लाली में घुलने लग । तभी अचा- नक गीदड़ को कुछ सूझी। वह उसी समय इस तरह लेट गया मानो मर गया हो । धोवी आया, गीदड़ को मरा हुआ देखकर ( १०४ )