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९६ हितोपदेश बोलूंगा । क्योंकि मुझे मृत्यु का भय तो है ही नहीं । भगवान् चन्द्र के वचनों को मै आपके सामने दुहराता हूँ। उन्होंने कहा है: तुमने चन्द्रसरोवर के रक्षक खरगोशों को निकालकर अच्छा नही किया । क्या तुम्हें यह नहीं मालूम कि मै खर- गोशों की रक्षा करता हूँ । मूर्ख देख, खरगोशों की रक्षा के कारण ही तो मेरा नाम शशांक पड़ा है । मेरी आज्ञा है कि तुम इस सरोवर पर जाना बन्द कर दो क्योंकि इस भांति खर- गोशों का नाश होता है। भगवान् चन्द्र की यह आज्ञा सुनकर हस्तिराज विशालकर्ण भयभीत हो गया । वह चन्द्रमा की ओर हाथ जोड़कर कहने लगा: महाराज शशांक मुझे क्षमा करें। मैने यह सब जान-बूझ 'कर नही किया । भविष्य में ऐसा अपराध न होगा। विजय : यदि ऐसा ही है तो तुम मेरे साथ उस सरोवर तक चलो जहाँ भगवान् चन्द्र क्रोध में लाल होकर कांप रहे है। चतुर खरगोश विशालकर्ण को उसी सरोवर पर ले गया। जल में हिलते हुए चन्द्रमा को दिखाकर वोला : देखो, भगवान् कितने क्रोधित है । इन्हें प्रणाम करो। विजय की बात सुनकर विशालकर्ण ने सरोवर में हिलते हुए चन्द्र को प्रणाम किया । विजय ने भी चन्द्रमा से प्रार्थना की कि इस बार विशालकर्ण को क्षमा किया जावे। यह भविष्य मे ऐसा अपराध कभी भी नहीं करेगा। बेचारा विशालकर्ण फिर कभी उस सरोवर की ओर