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हितोपदेश चोंच ही है। हम इसी से सब काम करते हैं । परन्तु फिर भी हमने अपने परिश्रम से यह नीड़ बनाया और आज सुखपूर्वक जीवन विता रहे हैं । तुम भी क्यों नहीं अपना घर वनाते ? पक्षियों की बातें सुनते ही बन्दरों की त्यौरियाँ चढ़ गईं। आँखें दिखाते हुए वे क्रोध से बोले : हमको कष्ट में देखकर तुम लोग हमारा उपहास करते हो । पानी थमते ही हम तुम्हें देख लेंगे। कुछ समय बाद वर्षा रुक गई । बन्दर पानी रुकते ही पेड़ पर चढ़ने लगे । वानरों को अपनी ओर आते देखकर सब-के-सव पक्षी अपने-अपने नीड़ों को छोड़कर भाग चले । बन्दरों ने सव के नीड़ नष्ट कर दिये। दीर्घ-मुख की कथा सुनकर राजा वोला : अच्छा, तो उन पक्षियों ने फिर क्या किया ? दीर्घमुख : तव वह क्रोध से वोले-तुम्हारे हिरण्यगर्भ को किसने राजा बनाया? मैने भी कहा : तुम्हारे चित्रग्रीव को किसने राजा बनाया ? इतना सुनना था कि वे सब मुझ पर टूट पड़े। तव मैने भी अपना पराक्रम दिखाया। हिरण्यगर्भ : तुमने यह ठीक नहीं किया दीर्घमुख ! अपने तथा शत्रु के बल को विना जाँचे ही जो झगड़ा कर लेता है उसे सदा नीचा देखना पड़ता है। विश्वास न हो तो चीते की खाल ओढ़कर खेत खानेवाले गधे की कहानी सुनाता हूँ।