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सुहृद्भेद रखे । राजा का कार्य ही दण्ड देना है। यह तो केवल कपटी मित्र ही था। माता, पिता, भाई, पुत्र चाहे कोई भी हो, यदि वह राज्य-सिंहासन की इच्छा करे तो उसे मार डालना चाहिये। इतने मे वन के अन्य पशु भी एकत्रित हो गये । सबने जय- जयकार करनी प्रारम्भ की। जय-जयकार से पिंगलक अपनी विचारधारा से भटक गया और विजय की मस्ती में घूमने लगा। वह फिर अपने सिंहासन पर आसीन हो गया और दम- नक तथा करटक ने पिंगलक की विजय के बहाने अपनी विजय के गीत आलापने प्रारम्भ कर दिये। ॥ द्वितीय खण्ड समाप्त ॥