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सुहृदभेद अपनी रक्षा की प्रार्थना करूँ तो वह स्वीकार करने वाला नहीं। फिर उससे प्रार्थना करना ही व्यर्थ है। खरगोश निर्धारित समय से बहुत देर बाद पहुँचा । इतनी देर बाद, और वह भी छोटे से बूढे खरगोश को आता देखकर सिह जलभुनकर खाक हो गया। सिंह : दुष्ट | तू इतनी देर से क्यों आया ? खरगोश : महाराज क्षमा करें। इसमे मेरा कोई भी अप- राध नही। सिह : तो इतनी देर से आने का कारण? खरगोश : महाराज, रास्ते मे मुझे एक और सिंह मिल गया था । कहने लगा-तू किसके पास और क्यो जा रहा है ? मैने आपका नाम बताकर कहा-वह हमारे राजा है। मैं उनके भोजन के लिए जा रहा हूँ। फिर क्या था ? उसने मुझको बहुत से अपशब्द कहे और कहा कि कहाँ है वह तुम्हारा राजा? उसे बुलाकर लाओ; मै उसे अभी पराजित करके स्वयं राजा वनूंगा। इतना सुनते ही सिंह की आँखे अगारे बरसाने लगी। वह बोला चल, पहले मै वही चलता हूँ। उसको मार कर ही मै तुझे ख़ाऊँगा। सिंह खरगोश के साथ-साथ हो लिया । कुछ दूर एक गहरे कुएँ पर पहुंचकर खरगोश ने सिह से कहा : महाराज, वह इसी मे रहता है। आप उसे स्वय देख ले। उस गहरे कुए में अपनी छाया देखकर सिंह क्रोध मे भर कर बहुत जोर से गरजा । कुएं मे से भी उसकी प्रतिध्वनि निकली। सिंह ने उसे अपने प्रतिपक्षी का गर्जन समझा।