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८ युक्ति से काम लो उत्पन्नेप्वपि कार्येषु मतिर्यस्य न हीयते। . . . संकट उपस्थित होने पर भी जिसकी वृद्धि विचलित नहीं होती, वह कार्य में सफल हो जाता है। . किसी वृक्ष पर एक कौआ सपत्नीक रहता था । वह बहुत पुराना वृक्ष था। उसके खोखले मे एक सर्प भी रहने लगा। एक वार कौए- के बच्चों को साँप ने खा लिया। कौआ और उसकी पत्नी को इस घटना से बहुत दुःख हुआ। पर वे सर्प का कुछ विगाड न सके। क्योकि वह उनसे अधिक बलवान् था। कुछ समय वाद कौए की पत्नी फिर से गर्भवती हुई और कौए से बोली स्वामी, अव हमे शीघ्र ही यह वृक्ष छोड़ देना चाहिए । क्योकि मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि पुत्रों के जन्म लेते ही यह दुष्ट उन्हे अवश्य खा जायेगा। मुझे तो अभी से उनकी रक्षा की चिन्ता सता रही है। शास्त्रों में कहा भी है-- सस च गृहे वासः मृत्युरेव न संशयः । . (७०)