यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सुहृद्भेद घण्टे को नहीं बजाते ? कुछ विचार करने के बाद वह राजा के पास गई और बोली: महाराज यदि आप कुछ धन व्यय करे तो मैं उस राक्षस को वश मे कर सकती हूँ। राजा ने उसे प्रचुर धन दिया । वह पर्वत की चोटी पर गई; वहाँ एक सुन्दर मण्डप बनाया । गणेश आदि का पूजन करवाया और फिर बन्दरो के लिये फल लेकर वह पर्वत के शिखर पर चढ़ गई। वहाँ उसने देखा, बन्दर घण्टा वजा रहे थे। फिर. क्या था? उसने वहाँ फल विखेर दिये । बन्दर फलों की ओर झपटे और वह घण्टा लेकर वापस चल दी। 'करला ने घण्टाकर्ण को वश मे कर लिया है यह जनश्रुति नगर में फैल गई और उसका आदर होने लगा। x x x x दमनक : महाराज, इसलिये आप उससे मित्रतापूर्वक बात करे । भयभीत न हो। इतना कहकर उन्होंने संजीवक को पिंगलक के सम्मुख उपस्थित किया और उन दोनों की मित्रता करा दी। संजीवक भी सिंह का मित्र वनकर वही सुख-सहित रहने लगा। एक दिन पिंगलक का भाई स्तब्धकर्ण वहाँ आया। उसका अतिथि सत्कार करने के उपरान्त पिंगलक भोजनादि की व्यवस्था करने के लिये संजीवक के साथ वन की ओर निकल पड़ा। संजीवक : मित्र, आज मारे हुए हिरणों का मांस कहाँ है ? पिंगलक : वह तो दमनक और करटक ही जानते हैं। संजीवक : उनसे पूछिये भी कि है भी या नहीं ?