मुहृद्भेद यह विचार आते ही वह चूहे के लिए एक विलाव को ढूंढने निकला । दृढ़ते-ढूंढते वह एक ग्राम में पहुंच गया। वहाँ उसने विलाव को बुलाया। पहले तो विलाव भय से कॉपने लगा, पर सिंह का आश्वासन पाकर वह उसके पास गया। सिंह ने अपनी मीठी-मीठी बातों से विलाव को फुसलाया और फिर उसे अपनी गुहा में ले गया। अव सिंह नित्य उसे ताजा मांस लाकर देता और आदर- पूर्वक खिलाता । उससे बडी मीठी-मीठी वातें करता। इधर विलाव को देखकर चूहे ने भी अपने विल से निकलना बन्द कर दिया। सिंह को अब चूहे का भय न रहा और वह निश्चिन्त होकर सोने लगा। पर सिंह यह जानता था कि चहा अब भी विल मे है। क्योकि वह कभी-कभी बिल मे शब्द किया करता था । जव-जव चूहा शब्द करता, सिंह विलाव को त्यो-त्यों और अधिक स्वादिष्ट मांस लाकर दिया करता। एक दिन दुख से अधिक व्याकुल होकर चूहा अपने विल से निकला। उसे देखते ही विलाव ने उसे मार डाला और खा लिया। इसी तरह कई दिन बीत गए। पर सिंह ने चूहे का जव गब्द नहीं सुना तो वह समझ गया कि चूहे को विलाव ने खा लिया। सिंह ने अव विलाव को मांस देना बन्द कर दिया। यहाँ तक कि विलाव भूखों मरने लगा और गुहा छोड़- कर भाग गया। दमनक : इसीलिये मै कहता हूँ कि सेवक को कभी निरपेक्ष नहीं करना चाहिये। तदुपरान्त दमनक और करटक सञ्जीवक के पास गये। दमनक के इशारे से करटक एक वृक्ष के नीचे अकड़कर बैठ $ 2
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